Thursday, May 1, 2025

"अंधेरे में खिला एक प्रेम गीत"

"अंधेरे में खिला एक प्रेम गीत"

अंधेरे की चादर में छिपकर,
मैंने तुझे पहली बार
प्रेम का उपहार दिया —
चाँद भी ठिठक कर देखता रहा।

लज्जा से बादल बन पर्दा आया,
क्यों तूने धीरे से चेहरा छुपाया?
बिन आँसू के तूने सब जान लिया,
और मेरी आँखों में सपना बन गया।

गर्मी के मौसम में जैसे पहली बारिश,
तू आया कुछ पल की रवानी बनके,
कोई गीत न गाया ज़ुबाँ से मगर,
दिल के सुरों में तू लहर बनके पिघल गया।

बिना रंगों की जो तस्वीर बनी थी,
तेरी मुस्कान ने उसमें जान भर दी।
कोमल कली की तरह मैं अब
तेरे लिए कविता बन खिलती हूँ।

तेरा हाथ थामकर मैंने,
जीवन के रास्तों को चूम लिया…
बीते दिनों की यादें आज भी
मीठे दर्द का साज़ छेड़ती हैं।

जी आर कवियुर 
०२ ०५ २०२५

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