ग़ज़ल : तुम्हारी मुस्कान से
चमन में जब तुम्हारी मुस्कान की बात चल पड़ी,
हर शाख में बहारों की मीठी सौगात चल पड़ी।
हवा भी थम गई थी जब छाया तुम्हारा रूप,
साँझ की हर धड़कन में तेरी ही बात चल पड़ी।
तेरा नाम जैसे कोमलता की पहचान हो,
कण-कण में तेरी छवि की सौंधी बात चल पड़ी।
जो गीत अधूरा था वो तुमसे पूर्ण हो गया,
बिन बोले भी मन की भाषा में बात चल पड़ी।
तेरे अधरों की मूक हँसी ने कह दिया सब कुछ,
बिना शब्दों के भी भावों की बात चल पड़ी।
जी आर ने भी दिल से तुझको अपना मान लिया,
अब हर साँस में तेरे नाम की बात चल पड़ी।
जी आर कवियूर
०२ ०५ २०२५
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