Thursday, May 8, 2025

एक माँ की ताकत

 एक माँ की ताकत




वह उजड़े घरों की धूल में चलती है,

ज़मीन काँपती है, फिर भी डगमग नहीं होती।

एक हाथ में बच्चे को थामे,

दूसरे से वह राख से चूल्हा जलाती है।


उसके चारों ओर गोलियाँ बोलती हैं,

फिर भी उसकी आवाज़ सुबह जैसी शांत रहती है।

वह बिखरे चावल बटोरती है,

मानो शांति को फिर से जोड़ सकती हो।


दीवार पर कोई पदक नहीं टंगा,

फिर भी वह हर दिन लड़ती है।

उसकी चुप्पी में भी साहस की गूंज है—

हम जीवित हैं क्योंकि उसने हार नहीं मानी।


जी आर कवियुर 

०८ ०५ २०२५

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