Saturday, May 24, 2025

क्या तुम फिर कभी नहीं लौटोगे?

रमज़ान की ठंडी हवा में,
यादों की परतों के बीच,
बिजली की छोटी चमक में,

मेरे दिल की खिड़की खुली,
मीठे दर्द जाग उठे,
याद करते हुए कि तुम वापस नहीं आओगे,
एक अकेरी, बेकरार रात।

हमारे गाए गीत हवा में बिखर गए,
जैसे धीरे-धीरे गायब होता साया,
हवा में बदलते बादलों की छाँव,
आँखें बारिश से भर गईं,
तुम मेरी नसों में बहकर फैल गए।

फूलों की खुशबू में हाथ थामे,
एक भूली हुई प्रेम याद,
एक भी संदेश दिए बिना,
क्या तुम फिर कभी नहीं लौटोगे?

जी आर कवियुर 
२४ ०५ २०२५

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