पाँव के नीचे कांटे ने सावधानी से चलना सिखाया,
दिल की पीड़ा ने सहने की ताकत दिलाया।
खामोश, कठोर ज़मीन पर क़दम हो गए हल्के,
दुख ने जब हिम्मत तराशी, रेत जैसे अडिग बन गए।
नीचे की चुभन ने संतुलन और दया सिखाई,
अंदर के ज़ख्मों ने मज़बूती की पहचान दिलाई।
पत्थरों की राह ने रोशनी की दिशा दिखाई,
अंदर की छायाएँ धीरे-धीरे उजाले तक लाई।
बाहरी पीड़ा समय के साथ कम हो गई,
भीतर की वेदना ने सोच और ताल दी।
दर्द से सीखे पाठों ने ऊँचाई तक पहुँचाया,
चुप आँसुओं से आकाश को छू लिया।
जी आर कवियुर
२५ ०५ २०२५
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