Saturday, May 31, 2025
हर लम्हे ( ग़ज़ल)
Thursday, May 29, 2025
एकांत विचार – 57
एकांत विचार – 57
हर कर्म बनता है एक बीज,
चुपचाप बोया गया सही बीज।
कुछ खिलते हैं सुबह की रौशनी में,
कुछ चुभते हैं काली रातों में।
दया बढ़ती है कोमल देखभाल से,
क्रोध सूखा देता है ज़मीन।
सच चमकता है रंगों के साथ,
झूठ मिट जाता है बिना शोर के।
हर कदम बनाता है बग़ीचा,
जड़ें फैलती हैं धीरे-धीरे।
दिल से चुनो हर राह को,
हर क्रिया में छुपा है निर्णय।
जी आर कवियुर
३० ०५ २०२५
Wednesday, May 28, 2025
यात्रा ज़िंदगी बन जाए!
भावों से भरा समुद्र
जंगल की यादें
जिंदगी की बहती नदी
एकांत विचार – 56
यात्रा ज़िंदगी बन जाए!
ग़ज़ल: तेरे बिना रातें
Monday, May 26, 2025
"हर राह पे तेरा नाम लिखेंगे" (ग़ज़ल)
एकांत विचार – 55
Saturday, May 24, 2025
पुराने आंगन, नई दीवारें
एकांत विचार – 54
क्या तुम फिर कभी नहीं लौटोगे?
सिंदूर
एकांत विचार – 53
Friday, May 23, 2025
एक मंदिर
एक प्रकाश, एक संसार (एक सार्वभौमिक प्रार्थना)
पानी के बीच से रास्ता (भक्ती गीत )
एकांत विचार – 52
एकांत विचार – 51
Thursday, May 22, 2025
भाषा की यात्रा"
Wednesday, May 21, 2025
एकांत विचार – 49
एकांत विचार – 50 सूर्य के लिए
Tuesday, May 20, 2025
शिक्षक से प्रश्न"
Monday, May 19, 2025
सैनिक का संगीत है न्यारा। (गीत)
एकांत विचार – 48
तेरी परछाईं साथ रही" (ग़ज़ल)
तेरी परछाईं साथ रही" (ग़ज़ल)
तुझसे मिलने की ख्वाहिश रही
तेरी यादों की परछाई साथ रही
हर सदा में तेरा नाम सुनाई दिया
चुप थी दुनिया, पर तू गुनगुनाई रही
चाँदनी रातें भी तुझसे शिकायत करें
क्यूँ तेरी आँखों में वो रौशनी नहीं रही
तेरे बिना हर खुशी लगती अधूरी सी
तेरे साथ हर तक़लीफ़ भी सुकून बनी रही
अब तो लम्हे भी तेरी तस्वीर से डरते हैं
‘जी आर’ की हर शायरी में तू ही बसी रही
जी आर कवि
यूर
१६ ० ५ २०२५
एकांत विचार – 47
एकांत विचार – 47
हम जो शब्द बोलते हैं
हम हर दिन सावधानी से अपना भोजन चुनते हैं,
और हर तरह से सोच-समझकर कपड़े पहनते हैं।
फिर भी हम जो कहते हैं, हम अक्सर चूक जाते हैं,
एक लापरवाह शब्द, एक पल की फुफकार।
अंदर से, हमारी आवाज़ उठती है,
बिना मापे विचार, कोई शांति नहीं, कोई दिखावा नहीं।
जो कुछ भी बोला जाता है उसे मिटाया नहीं जा सकता,
कुछ दिलों को तोड़कर, गहराई से छूकर छोड़ जाते हैं।
इसलिए शब्दों को उड़ने देने से पहले रुकें,
वे वापस आकर आपको रुला सकते हैं।
दयालु बनें, कोमल बनें, इस पर गहराई से सोचें—
जो आपके होठों से निकलता है, वह सच को आकार दे सकता है।
जी आर कवियुर
१९ ०५ २०२४
एकांत विचार – 46
एकांत विचार – 46
जब शब्द अग्नि बन जाएं, छूना भी चुभन दे
परछाई में छिपे हों, फिर भी चिंगारी उड़ती है
लाल रंग की शांति में भी, दिल चुपचाप टूटता है
पंख जल जाएं अगर, राख बनकर उड़ते हैं
विचार दूर जाएं तो, समय रुक जाता है
प्यार से कहा गया भी, तलवार बन सकता है
मजाक में बोला गया, आग का रास्ता बन जाए
जो अनदेखा हो, वो भी दर्द दे सकता है
पाठक रोएं तो, लेखक भी कांपता है
कभी-कभी चुप्पी भी रास्ता दिखाती है
एक शब्द हज़ार कहानियाँ कह सकता है
कर्म से परे भी, बातों में ताकत होती है।
जी आर कवियुर
१८ ०५ २०२५
Sunday, May 18, 2025
सरहद की छांव में"
Friday, May 16, 2025
एकांत विचार – 45
एकांत विचार – 44
Thursday, May 15, 2025
तु कहा हो?!!
तु कहा हो?!!
कविता कितनी पुरानी होगी?
क्या वो समय था जब जंगल का शिकारी तीर चलाता था?
या अंधेरी गुफाओं से वो आंसू बनकर निकली थी?
क्या वो खारी पीड़ा से भरी थी, या शहद जैसी मीठी?
क्या वो तितलियों जैसी सुंदर थी,
या जैसे ढोलक और मधुमक्खियाँ मिलकर गा रही हों,
पहले प्यार जैसी कोई अनुभूति?
कोई नहीं जानता...
कविता बस अपने ‘क’ और ‘विता’ के साथ,
भीड़ के बिना, चुपचाप अंकुरित हुई।
उसे पकड़ना मुश्किल है,
वो आँखों में आधी, और खामोशी में आधी होती है।
शब्दों से परे, दर्द के पास,
एक अनकहा संगीत बन गई है।
जड़ें जैसे खिसकती हैं वैसे ही वो भागती है,
शब्द जोड़ो तो टूट जाते हैं।
वो बस सोच में लटकी रहती है,
एक याद बनकर आती है और बिना बताकर चली जाती है।
जब उसे गाने की कोशिश करो, वो शांत हो जाती है।
उसे नाम की जरूरत नहीं,
वो सिर्फ एक छाया है, एक साथ चलने वाली।
हमेशा साथ रहेगी —
अगर किसी दिन मैं न रहूं,
तो भी कविता बनी रहेगी।
जी आर कवियुर
१६ ०५ २०२५
एकांत विचार – 43
एकांत विचार – 43
जिन्होंने तुम्हें प्यार दिया,
उन्हें दिल से सराहो।
जो मदद माँगते हैं,
उनकी ओर करुणा से हाथ बढ़ाओ।
जिन्होंने दुख दिया,
उन्हें माफ़ करने की भाषा बोलो।
चुपचाप दुख को भूल जाओ,
नई राह पर आगे बढ़ो।
जो छोड़कर चले गए,
उन्हें बिना दोष दिए चुप रहो।
जीवन की अगली यात्रा में,
प्यार के बीज बोते चलो।
जी आर कवियुर
१५ ०५ २०२५
एकांत विचार – 42
एकांत विचार – 42
ज्ञान एक दीपक के जैसा है,
जो अंधेरे में रास्ता दिखाता है।
धन से भी बढ़कर है इसकी कीमत,
सुंदरता को भी पीछे छोड़ देती है इसकी चमक।
पढ़े-लिखे लोग दुनिया की आंखें हैं,
वे नई सुबह की रौशनी लाते हैं।
सोना चाहे कितना भी हो, मन को ज्ञान ही चमकाता है,
क्या ज्ञान ही सच्चा आभूषण नहीं है?
भाग्य साथ न दे तो भी ज्ञान बढ़ता है,
उसकी कीमत साबित करने में पल ही काफी हैं।
एक बढ़ते पेड़ की तरह ज्ञान फैलता है,
और जीवन को ठंडी छांव देता है।
जी आर क
वियुर
१५ ०५ २०२५
Wednesday, May 14, 2025
एकांत विचार – 41
ग़ज़ल: "तेरा एहसास"
सूरज का पुनर्जन्म
Tuesday, May 13, 2025
एकांत विचार – 40
एकांत विचार – 39
एकांत विचार – 38
शांतिपथ
Sunday, May 11, 2025
एकांत विचार – 38
एकांत विचार – 37
एक पिता का मौन प्रेम"
Friday, May 9, 2025
एकांत विचार – 36
एकांत विचार – 35
एक प्राथना गीत
Thursday, May 8, 2025
एकांत विचार – 34
एक माँ की ताकत
एक माँ की ताकत
वह उजड़े घरों की धूल में चलती है,
ज़मीन काँपती है, फिर भी डगमग नहीं होती।
एक हाथ में बच्चे को थामे,
दूसरे से वह राख से चूल्हा जलाती है।
उसके चारों ओर गोलियाँ बोलती हैं,
फिर भी उसकी आवाज़ सुबह जैसी शांत रहती है।
वह बिखरे चावल बटोरती है,
मानो शांति को फिर से जोड़ सकती हो।
दीवार पर कोई पदक नहीं टंगा,
फिर भी वह हर दिन लड़ती है।
उसकी चुप्पी में भी साहस की गूंज है—
हम जीवित हैं क्योंकि उसने हार नहीं मानी।
जी आर कवियुर
०८ ०५ २०२५
