दशरथ विलाप
जब मैं सोचता हूँ बीते दिन-रात,
कैसे घटा अयोध्या का वो काला प्रलय।
रघुकुल नायक, वचन के पक्के,
किया मैंने खुद को अपने वचन के हवाले।
राम, मेरे प्रिय, अयोध्या का राज,
जिसे सौंपना था मैंने, सबसे ताज।
कैकेयी के वरदान ने बदला खेल,
बेटे को वनवास, और दिल को दर्द बेहाल।
वो पल जब मैंने दिया था वर,
कैकेयी को, मेरे मन में थी खुशी भर।
किसे पता था, एक दिन आएगा ऐसा,
जो ले जाएगा राम को मुझसे दूर वैसा।
मन में दर्द, आँखों में आँसू,
राम के बिना, जीवन हो गया है बेमतलब।
कैसे कहूँ, मेरे दिल का हाल,
राम के बिना, जीवन हो गया है कंगाल।
राम का वन जाना, मेरे लिए अभिशाप,
कैसे सहूं मैं इस दुःख का प्रलाप।
मेरे वचन ने किया मुझे कमजोर,
राम के बिना, जीवन हो गया है कठोर।
हे राम, हे पुत्र, लौट आओ,
तेरे बिना, जीना है अब नामुमकिन।
मैं जानता हूँ, तू धर्म का पालन करेगा,
पर तेरे बिना, मेरा दिल सदा रोएगा।
जी आर कवियूर
25 07 2024
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