Tuesday, July 9, 2024

खामोशियों में

खामोशियों में 

खामोशियों में छुपे हैं कई राज़
नज़रअंदाजी हुई है कई बार
मेरे दिल की धड़कन भी कुछ कहती है
शायद तुमने नहीं सुना वो साज

चुप-चुप से लम्हे, खामोशियाँ गहरी
नज़रअंदाज किया तुमने, ये दर्द है शहरी
मेरी रुतबे की पहचान नहीं तुम्हें
मेरे दिल के हालात नहीं तुम्हें

खामोशियों में भी एक कहानी है
नज़रअंदाजी से बढ़ती ये वीरानी है
मेरी रुतबे को समझना मुश्किल है
शायद इसीलिए तुमसे फासला है

दिल के अंदर की बातें खामोश रह जाती है
नज़रअंदाज न करो, इनकी भी एक चाहत है
मेरे रुतबे से रूबरू होना मुश्किल है
पर खामोशियों में भी एक आवाज़ है। 


जी आर कवियूर
09 07 2024

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