माना स्वार्थ की राह आसान है,
पर सच्ची दोस्ती से बढ़कर कुछ नहीं जान है।
मिलकर चलें तो सफर आसान हो जाता है,
बिना साथ के हर मोड़ वीरान हो जाता है।
सच्चे साथी के बिना सुख भी अधूरा है,
स्वार्थी मन का जीवन तो बहुत ही कच्चा है।
रिश्तों की मिठास में स्वार्थ का स्वाद न घोलें,
साथ की छांव में हर दुख-दर्द भूलें।
अपने स्वार्थ को थामे रखें थोड़ा पीछे,
मगर साथी का हाथ कभी न छोड़ें।
स्वार्थ के लिए जो साथी को छोड़े,
वो जीवन में सच्ची खुशी कब पाए।
साथ निभाना ही सच्चा धर्म है,
इससे बढ़कर कुछ भी नहीं कर्म है।
जी आर कवियूर
09 07 2024
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