माना कि मैं कवि नहीं,
पर दिल की बात कहता हूँ।
कागज़ पर जब लिखता हूँ,
मन का भार सहता हूँ।
सपनों की रंगीनियाँ,
शब्दों में सजाता हूँ।
चाँदनी रात की बातें,
कविता में गुनगुनाता हूँ।
भावनाओं की लहरों में,
खुद को मैं बहता हूँ।
माना कि मैं कवि नहीं,
पर दिल से लिखता हूँ।
जी आर कवियूर
06 07 2024
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