खुद को संजोता चला हूं।
निर्जन पथ पर अकेला चला हूं,
आँखों में सपनों का दीपक जला हूं।
हर कदम पर कांटे मिले मुझे,
फिर भी मुस्कुराता हुआ चला हूं।
आंधियों ने जब-जब बुझाने की कोशिश की,
और भी तेज़ी से जलता दीपक बना हूं।
राह में साथी न मिला कोई,
फिर भी आत्मविश्वास से भरा चला हूं।
कभी धूप ने जलाया, कभी बारिश ने भिगोया,
फिर भी अपने रास्ते पर अडिग खड़ा हूं।
मंजिल चाहे दूर हो कितनी भी,
हर पल, हर कदम पर खुद को संजोता चला हूं।
जी आर कवियूर
09 07 2024
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