Saturday, July 13, 2024

फिर से जी उठती हैं,

फिर से जी उठती हैं,

आँखों में नम सी नमी,
यादों का वही खेल,
दिल में बस गई है,
कुछ अधूरी सी बातें।

रातों को सो न सकूँ,
वो ख्वाब अधूरे से,
जागती आँखों में भी,
बस वही साये हैं।

बीते दिनों का हिसाब,
समझ ना आए कुछ,
फिर भी जीता हूँ मैं,
इन अधूरे अरमानों के संग।

मुस्कानों की कमी,
दिल को फिर से रुलाए,
यादों की ये सूरत,
जीने न दे, मरने न दे।

इन खामोश पलों में,
ढूंढ़ूँ मैं तुझको हर बार,
यादों के इस जाल में,
फँसा हूँ बुरी तरह।

अब भी दिल में छुपी,
तेरी प्यारी सी यादें,
फिर से जी उठती हैं,
प्रेम की वही बातें।

जी आर कवियूर
14 07 2024


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