Tuesday, January 14, 2025

खामोशियों के राज़ (ग़ज़ल )

खामोशियों के राज़ (ग़ज़ल )

खामोशियां जो कह गईं, वो अल्फाज़ बन गए,
जिन्हें हम छुपा न सके, वो राज़ बन गए।
दिल के दरिया में उठते हैं मौजों के सिलसिले,
तेरे बिना ये पल भी बेज़ुबान बन गए।

हर दर्द में तेरी तस्वीर छुपी रहती है,
हर ख़ुशी में तेरी झलक बसी रहती है।
चाहा जो तुझे सच्चे दिल से हमने,
हर दुआ में तेरी आरज़ू बची रहती है।

मोहब्बत की इस डगर पर चलते-चलते,
सारे ज़ख्म भी जैसे फूल बन गए।
'जी आर' ने बस तुझसे वफ़ा निभाई,
और तुझ पर अपनी हर सांस छोड़ गए।

जी आर कवियूर
14 -01-2025

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