Saturday, January 11, 2025

"विरह की तपिश"

"विरह की तपिश"

तन्हाई की आग में तड़पता रहा,
तुम्हें ना पता, मैं यादों की भीड़ में।
हर एक ख्वाब में तेरा चेहरा मिला,
दिल डूबता रहा इश्क़ की जमीं में।

लब खामोश हैं, मगर दिल चीखता है,
तेरे बिना ये जहाँ अधूरा सा दिखता है।
हर एक शाम ने तेरा नाम पुकारा,
हर एक रात ने दिया दर्द का सहारा।

तेरी बाहों में थे जो सुकून के पल,
अब वो बस कहानियों की तरह लगते हैं।
आ लौट आ, मेरी जान बनके,
तेरे बिना ये साँस भी रुकते हैं।

इश्क़ तेरा मेरी रूह में बसा है,
हर धड़कन पे तेरा नाम लिखा है।
तन्हाई के इस सागर में डूबा हूँ,
तेरे प्यार के किनारे पे रुका हूँ।
 
जी आर कवियूर
12 -01-2025

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