Friday, January 17, 2025

तुम इतना क्यों खफा हो हमसे (ग़ज़ल)

तुम इतना क्यों खफा हो हमसे ( ग़ज़ल)

तुम इतना क्यों खफा हो हमसे,
इश्क के नाम से क्यों तुम्हें।
इतनी बेखुदी हो रही है क्यूं,
वक्त की मुरादों में बेवफाई है क्या?

दिल को न समझाया हमने,
हर जख्म को सहलाया हमने।
फिर भी तेरी खामोशी क्यों,
जुबां पे कोई सच्चाई है क्या?

चांदनी रातें भी अब रोती हैं,
सितारे भी खामोश होते हैं।
तेरे दीदार की इस तड़प में,
आसमान की रुसवाई है क्या?

तुम्हारी बाहों का जो सपना था,
अब एक अधूरी दास्तां सा है।
जुदाई के इन सन्नाटों में,
छुपी हुई कोई परछाई है क्या?

तुम इतना क्यों खफा हो हमसे,
इश्क के नाम से क्यों तुम्हें।
इतनी बेखुदी हो रही है क्यूं,
वक्त की मुरादों में बेवफाई है क्या?

जी आर कवियूर
17 -01-2025

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