Friday, January 31, 2025

"यादों के प्रेमाक्षर"

"यादों के प्रेमाक्षर"



तेरे बारे में सोचते हुए
मैं सूखी नदी से बात करता हूं।

पत्ते को झटने के लिए तैयार,
हवाओं का इंतजार करते हुए, पेड़ों के पास।

मैं अकेला गाने के लिए तैयार,
चिड़ियों के गीतों में अपनी आवाज़ मिलाने।

सुर में समाने के लिए तैयार,
चाँदनी रातों में, साजों के साथ।

न किसी ने देखा, न किसी ने जाना,
तेरे बारे में—
अब मैं किससे पूछूँ, सनम?

मैं अपने यादों की किताब में,
एक पन्ना बनकर तेरे साथ हूं।

जो भी कहा, जो भी देखा,
वह सब कुछ अब मेरे लिए सच है।

मेरे शब्दों में सदा बसी,
प्रेम की मीठी पीड़ा बनकर।

तेरी यादों से भरी,
मेरे शब्दों में एक पन्ना हरदम है।

धीरे-धीरे रातों में बहती,
दिनभर लटके स्वप्नों से मिलती है।

आंखों में बसी,
वो यादें जो कभी न भूल सकेंगे।

तू जो मेरे भीतर बसा,
वह स्वच्छ बारिश की सुंदरता बन गई।

यादों की छांव में मैं,
तुझे कविता बनाकर खोज रहा हूं, सखि!

जी आर कवियूर
31 -01-2025


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