Wednesday, January 1, 2025

नववर्ष की ग़ज़ल

नववर्ष की ग़ज़ल

हर बार आती है ख़ुशबू नयी, बहारों की,
हर ग़म छुपा के चलो, बात प्यारों की।

नये सपनों की राहें बुला रही हमको,
कहानी लिखें चलो फिर से इशारों की।

नये सूरज की किरणें हैं, आस का सबब,
ख़त्म हो रात, उम्मीदें हैं सितारों की।

दिलों में जलाओ दीया दोस्ती का फिर,
दुनिया को जरूरत है अब सहारों की।

गुज़रा जो पल, वो सबक बनके रह गया,
अब बात करते हैं बस इरादों की।

जिन्हें खो दिया, उन्हें याद भी करेंगे हम,
मगर लकीर खींचें नए किनारों की।

वो देख, सुबह है, बदलते हैं रास्ते,
चलो करें शुरुआत फिर नज़ारों की।

जीने का हौसला हर बार लाती है,
बातें पुरानी मगर हैं ख़ुमारों की।

जी आर कहते हैं, हर साल बीत जाता है,
मगर तेरे आने की उम्मीद पर जीता गया।

 जी आर कवियूर
01-01-2025

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