Monday, June 30, 2025

भाई जैसा कोई नहीं" ( ग़ज़ल)

भाई जैसा कोई नहीं" ( ग़ज़ल)

भाई जैसा कोई और साथ नहीं होता,
दुख में भी जो हँसाए, वो हाथ नहीं होता।

बचपन की हर ख़ुशी में जो साथ चलता है,
वो रिश्ता यूँ ही दिल के पास नहीं होता।

कभी लड़ते हैं तो लगे दुश्मन सा कोई,
पर हर चोट पे पूछे, 'कुछ बात नहीं होता?'

मुसीबत में जो दीवार बन खड़ा हो जाए,
उस जैसा कोई और जज़्बात नहीं होता।

'जी आर' ने देखा है रिश्तों का संसार,
भाई जैसा कोई जज़्बात नहीं होता।

जी आर कवियुर 
01 07 2025 


मौक़ा तो दे" (ग़ज़ल)

मौक़ा तो दे" (ग़ज़ल)

हमें दिल लगाने का मौका तो दे
इश्क़ की मीठी बातें कहने तो दे

बहुत थक गया हूँ मैं तन्हाइयों से
कभी तू मुझे अपनी छांव सा तो दे

सवालों में उलझा है हर एक रिश्ता
जवाब-ए-मोहब्बत तू खुलकर तो दे

तेरी मुस्कुराहट है मरहम मेरी
मुझे दर्द सहने की ताक़त तो दे

मैं फिर से सँवर जाऊँगा तेरे दम से
मेरी टूटी रूह को सहारा तो दे

'जी आर' को बस तेरी चाहत ही काफी
वफ़ाओं में डूबा वो सपना तो दे

जी आर कवियुर 
01 07 2025

Sunday, June 29, 2025

हरियाली: प्रकृति का उपहार

हरियाली: प्रकृति का उपहार

पत्तियाँ लहराएँ पवन की चाल,
पेड़ों में गूंजे शांति का लाल।
मुलायम घास बिछी ज़मीं पर प्यार से,
प्रकृति का स्पर्श हो जैसे स्नेह से।

चिड़ियाँ पाएँ आश्रय सुंदर,
नदी बहे नीरव और निर्मल।
छाया, शांति, करुणा की धारा,
मन को दे राहत की प्यारी ध्वनि सारा।

हर एक पत्ता आशा का संदेश,
स्वच्छ हवा का मीठा परिवेश।
इस सुंदरता को हम संभालें,
धरती सदा हरी-भरी रहें। 

जी आर कवियुर 
30 06 2025

मनुष्य – एक सरल कहानी"

मनुष्य – एक सरल कहानी"

धरती से जन्मा, समय ने सँवारा,
चमकने की चाह ने सफ़र उबारा।
सपनों की नदियाँ, बहती अनंत,
आशा-संशय चलते संग-संग।

हाथों से रचना, आँखों से खोज,
पग डगमगाएँ, फिर भी हो प्रबोध।
शब्द मिट सकते, कर्म रह जाते,
जीवन की गहराई वही बतलाते।

सिर्फ़ बल नहीं, हृदय भी माने,
मौन के संकेतों में सत्य ठाने।
जलती लौ जो बुझती नहीं,
खुले मन से चलता वही — मनुष्य वही।

जी आर कवियुर 
30 06 2025

एक नई शुरुआत

एक नई शुरुआत 

एक नया दिन रोशनी लेकर आया,
आसमान आज बहुत ही विशाल है।
भीतर पलते सपने जाग उठे हैं,
हम चल पड़े हैं शांत दिल के साथ।

सुबह की बयार गुनगुनाने लगी है,
हर उम्मीद को मिल गए नए पंख।
धुंध हट सकती है, पर तारे चमकते हैं,
तेरा रास्ता जल्द ही सही हो जाएगा।

फिर से शुरू कर, डरने की बात नहीं,
आंधियाँ भी धीरे-धीरे थम जाएँगी।
हर अंत में छिपे हैं वसंत के बीज,
यही है ज़िंदगी – एक नई शुरुआत।

यही है एक नई शुरुआत,
बस एक कदम ही काफी है।
आँसुओं के बाद मुस्कान खिलती है,
यही है जीवन का मधुर गीत।

जी आर कवियुर 
30 06 2025

मौन की राह में(गुरुदेव श्री श्री से प्रेरणा)

मौन की राह में
(गुरुदेव श्री श्री से प्रेरणा)


मौन की गहराई में चलता है मन,
भीतर का उजाला बनता है धन।
ध्यान में बैठो, छोड़ो शोर,
मिलता है भीतर का सच्चा भोर।

विचार उठें तो भी ना डगमगाओ,
धैर्य से फिर से भीतर समाओ।
हर श्वास कहे, “ठहरो ज़रा,”
मिलता है वहाँ सुकून भरा।

भीतर की ये यात्रा अनमोल है,
जहाँ बस आत्मा का बोल है।
जब सब छूटे, रह जाए तू,
तब ही मिलेगा सत्य रूप तू।

जी आर कवियुर 
29 06 2025

अकेले विचार – 83

अकेले विचार – 83

जब लोग करें तुम्हारी काबिलियत पर सवाल,
तब भी रहो चमकते जैसे हो कमाल।
संदेह हैं परछाई, सच नहीं,
ताक़त तुम्हारी छुपी कहीं नहीं।

हीरे की पहचान होती है कसौटी से,
उसकी चमक न घटती किसी भी बात से।
सोने को भी परखा जाता बार-बार,
फिर भी वो रहता सबसे बेहतरीन यार।

हर परीक्षा में रखो आत्मसम्मान,
तुम जानते हो खुद को सबसे महान।
दुनिया के शब्दों को बहने दो हवा में,
अडिग रहो, जैसे पर्वत खड़ा हो धरा में।

जी आर कवियुर 
29 06 2025

Saturday, June 28, 2025

अकेले विचार – 82

अकेले विचार – 82

अपने भीतर जो गलती दिखे,
वही सच्चा ज्ञान बन सके।
झुककर कहना "मैं था ग़लत,"
इससे बड़ी न कोई हिम्मत।

नहीं ज़रूरी हरदम जीत,
सच बोलना है असली रीत।
जो चुपचाप स्वीकार करे,
वो सबसे ऊँचा स्थान भरे।

अहंकार जब नीचे झुके,
तभी उजाले दिल में रुके।
गर्व नहीं जो दोष छुपाए,
वो ही पुण्य कहलाए।

जी आर कवियुर 
२६ ०६ २०२५

अकेले विचार – 81

अकेले विचार – 81

छायाएं और सरगोशियाँ

कुछ बोलते हैं बहुत ज़ोर से,
नामों और किस्सों में खोते हैं।
अपनी शान दिखाते हैं सबको,
जैसे हर रिश्ता वे ही ढोते हैं।

मगर कुछ बस ख़ामोश खड़े रहते,
बिना कहे सब कुछ कह देते।
पहचान नहीं, दावा नहीं,
बस चुपचाप सब कुछ सह लेते।

दिखते नहीं, पर असर छोड़ते,
उनकी ख़ामोशी बहुत कुछ बोलती।
घमंड खो जाए, आवाज़ें थम जाएँ,
पर प्यार की छाया हमेशा चलती।

GR kaviyoor 
25 06 2025

अकेले विचार – 80

अकेले विचार – 80


धन सोने-चांदी में नहीं होता,
साहसी दिल में होता है सच्चा मोती।
शांत मन जो सच्चा हो,
लाता है नींद और चैन की रोशनी।

ताज चमकें, दौलत बढ़े,
पर बेचैन दिल हमेशा तड़पे।
शांत आत्मा में होती है शक्ति,
जहाँ भी जाए, फैलाए खुशी।

आंधियाँ आएं, सपने टूटें,
मन का सुकून ज़ख़्मों को छूटे।
ज़्यादा मत ढूँढो, भीतर झाँको—
सच्चा खज़ाना वहीं तो है, प्यारे।

जी आर कवियुर 
२५ ०६ २०२५

अकेले विचार – 79

अकेले विचार – 79

जब माँगा मैंने प्यार भरा,
मिला बस कुछ सिक्का अधूरा।
दौड़ के रिश्ते, दिखावे के,
सच्चा ना था कोई भी चिह्न।

मन की गहराई से जो दे,
बस वही है असली प्रेम।
हर मुस्कान, हर साथ नहीं,
हर चेहरा सच्चा साथ नहीं।

जो दिल को सच में छू जाए,
उसी को अपनाओ जीवन में।
जो चमके वो सोना नहीं,
सच्चा प्यार ही होता धन।

जी आर कवियुर 
24 06 2025

अकेले विचार – 78

अकेले विचार – 78

युद्ध क्यों?

आज रात खामोशी में एक पालना खाली पड़ा है,
धुँधली होती रोशनी में एक माँ उदास होकर रो रही है।
जो आसमान कभी नीला था, अब आग का रंग है,
शांति के सपने कीचड़ में छिपे हैं।

मासूम आँखें, कृपा के क्षितिज को देखती हुई,
एक बच्चे की उम्मीद बिना किसी निशान के खो गई है।
जो खेत कभी सोने से लदे थे, अब धूल बन गए हैं,
अविश्वास से छोड़ा गया घर खंडहर में पड़ा है।

नेता बोलते हैं - लेकिन दिल चुप हैं,
दुश्मनी और दर्द की कीमत हमेशा ऊँची होती है।
जब झंडे फहराते हैं, तो ज़िंदगियाँ ठंडी ज़मीन पर गिरती हैं -
यह दुनिया फिर भी दुःख क्यों चुनती है?

जी आर कवियुर 
२४ ०६ २०२५

सच्ची सौगात!

 सच्ची सौगात!

प्रभु, मैं डूब रहा हूँ दुख की धारा में,
लहरों ने तोड़ दिया है मन का किनारा।
शत्रु घेरें, लेकिन तेरे सहारा में,
मैंने तुझमें पाया है सच्चा सहारा।

लज्जा, अपमान मैंने सहा है,
शहर के द्वार पर बना मज़ाक।
रूठा हर कोई, न कोई सखा है,
फिर भी तुझसे ही जुड़ा हर राख।

मुझे बचा ले, न डूबने दे प्रभु,
तेरी दया है सबसे प्यारी बात।
मैं गाऊँगा तेरा गुणगान हर सुबह,
तेरे नाम में मिले सच्ची सौगात!

जी आर कवियुर 
२८ ०६ २०२५

सनातन की निःशब्द पुकार‌

सनातन की निःशब्द पुकार
घने वन के मौन से निकली शांति की धारा,
ध्यान में लीन ऋषियों की गूढ़ विचारधारा।
कृष्ण की बंसी से निकला मधुर स्वर,
प्यार की रागिनी छेड़ता हर एक प्रहर।

मंदिरों में गूंजते जप के सुर,
नदियों में बहती ज्ञान की लहर।
धर्म की वाणी दिलों में बसती,
तारों-सी चमकती, दिव्यता बरसती।

कबीर के शब्दों की निर्मल पुकार,
गीता की वाणी में सत्य का सार।
अब मैं भी मिलाता हूँ अपना स्वर,
सनातन पथ पर प्रेम से भरा ये सफ़र।

जी आर कवियूर
२८•०६•२०२५

फैलता आनंद

फैलता आनंद
 ( जी आर कवियुर 
२८ ०६ २०२५)

जब बात करो आनंद की,
तो मन में रुकता है उसकी छवि।
यह छोटी-सी लौ नहीं है बस,
यह सूरज है जो चाँद को भी जगा दे।

मोमबत्ती थोड़ी देर को जलती है,
फिर उसकी रौशनी धीरे-धीरे बुझ जाती है।
पर ज्ञान फैले जैसे जंगल की आग,
वह कभी छुप नहीं सकता, सब तक पहुँच जाती है।

ज्योति बनकर फैलती है यह, अकेले नहीं जलती,
ज्ञान की चिंगारी ही जगाती है सोई भीड़ को।
जब दिल एक साथ रोशन होते हैं,
तो आनंद बहता है जैसे विशाल समुद्र की लहरें।

— गुरुदेव श्री श्री के संदेश से प्रेरित

सत्यवेल का संदेश

सत्यवेल का संदेश
 ( जी आर कवियुर 
२८ ०६ २०२५)



सत्य की बेल से जीवन जुड़ा रहता है,
फलदायी शाखाएँ उसमें पुष्ट होती जाती हैं।
बिना जड़ के कोई शाखा नहीं बढ़ती,
प्रेम में ही जीवन की रेखा रची जाती है।

वचनों से हृदय में आनंद भरता है,
पारस्परिक प्रेम ही सच्चा आदेश होता है।
चयन हुआ है अमर फल देने हेतु,
जीवन में चमत्कार तब खिलते हैं शांत रूप से।

जब संसार ठुकराए, डर की ज़रूरत नहीं,
सत्य का आत्मा स्वयं साक्षी बन जाता है।
आत्मा के संग जो एकता बनी रहे,
तो आरंभ से प्रतीक्षित प्रेम ही मित्रता कहलाती है।

— यूहन्ना 15 अध्याय से प्रेरित एक मननशील कविता



अब तेरे राहों में ( ग़ज़ल )

अब तेरे राहों में ( ग़ज़ल )


अब तेरी राहों में नज़रें बिछाए हैं
हर आहटों में तुझे ही बुलाए हैं

तेरे बिना हर शाम अधूरी लगे मुझको
चाँदनी रातों में भी उदासी समाए हैं

तुझसे मिले मुद्दतें बीत गई हैं मगर
अब भी तेरे ख़्वाब दिल में समाए हैं

सांसों में महकती है तेरी याद की ख़ुशबू
तेरे जाने के बाद भी ये रंग लाए हैं

आँखें भरी हैं, होंठ खामोश हैं लेकिन
लबों से न बोले, दिल सारे फ़साने सुनाए हैं

‘जी आर’ ने लिख दी है ये दिल की ग़ज़लें
तेरे तसव्वुर में ही अशआर आए हैं

जी आर कवियुर 
28 06 2025

Friday, June 27, 2025

ग़ज़ल - भीगी इस रात की तन्हा सी चुप्पी में

ग़ज़ल 

भीगी इस रात की तन्हा सी चुप्पी में
टूट के कुछ बोल उठे दिल की धड़कन में

रात भर जागती यादों का सफर देखा
तेरा चेहरा ही उभरा हर एक दर्पण में

हसरतें भीग गईं अश्कों की बारिश में
कोई उम्मीद न बची मेरी दामन में

वक़्त ने लूट लिया ख़्वाब सभी मेरे
बस तन्हाई ही बची इस मुसाफ़िर मन में

नींद तो आँखों से रूठी कई सदियों से
अब सुकूं ढूंढता फिर रहा हर क्षण में

लफ़्ज़ सिमटे हैं 'जी आर' की ग़ज़ल बनकर
ग़म भी रोने लगे उसकी हर एक छन में

जी आर कवियुर 
२६ ०६ २०२५

Saturday, June 21, 2025

ग़ज़ल: तू एक किताब थी

ग़ज़ल: तू एक किताब थी



तू एक किताब थी जिसे पढ़ने की तमन्ना थी,
हर पन्ने में कुछ राज़-ए-मोहब्बत की रवानी थी।


तेरे लफ़्ज़ों से महकते थे जज़्बातों के गुलशन,
हर हर्फ़ में दिल की किसी गहरी कहानी थी।


कभी तू बारिश की पहली बूँद सी महसूस हुई,
कभी तू चुप्पियों में उठती इक पुरानी निशानी थी।


तेरी ख़ामोशी ने भी इक नग़्मा गुनगुनाया था,
वो धड़कनों से जुड़ी एक मीठी रवानी थी।


तेरे पन्नों में मैं हर रोज़ थोड़ा और खोता गया,
तू पढ़ते-पढ़ते दिल के बहुत पास आनी थी।


'जी आर' ने जब भी तुझे आँखों से पढ़ा दिल से,
हर बार लगा तू ही मेरी रूह की कहानी थी।

जी आर कवियुर 
२२ ०६ २०२५

संगीत की परछाइयाँ (ग़ज़ल)

संगीत की परछाइयाँ (ग़ज़ल)

हर इक साज़ की लय में जज़्बात समा गया,
संगीत मेरा हर दर्द छुपा गया।

कभी शबनमी बन के कानों में बरसा,
कभी दिल के वीराने को गुलज़ार बना गया।

सुरों की उस रूहानी बारिश में,
दर्द भी मुस्कुरा कर बहा गया।

जब बांसुरी ने रात को गीत सुनाया,
तो तनहाई को भी चैन आ गया।

हर धुन ने इक रिश्ता जोड़ा दिलों से,
अजनबी को भी अपना बना गया।

"जी आर" जब भी गीतों में गुम हो गया,
ख़ुशी का साया हर सू लहरा गया।

जी आर कवियुर 
२१ ०६ २०२५

अकेले विचार – 77

अकेले विचार – 76

हर खोई चीज़ वापस नहीं आती,
कुछ सपने बेनाम ही मिट जाते हैं।
पर जो हमारे हाथों की पहुंच में है,
उसके लिए तो पूरी मेहनत चाहिए।

सूरज के उगने को कोई रोक नहीं सकता,
हर कदम आगे बढ़ाना जरूरी है।
रास्ते मुड़ सकते हैं, उम्मीदें डगमगा सकती हैं,
फिर भी चाह का दीपक जलता रहना चाहिए।

डर साज़िश कर सकता है, वक़्त आज़माएगा,
पर कोशिश करना हमारा कर्तव्य है।
ईमानदारी से छुए गए हर तारे की चमक,
हमारे भीतर एक रोशनी बनकर जलेगी।

जी आर कवियुर 
२२ ०६ २०२५

अकेले विचार – 76

अकेले विचार – 76

हर खोई चीज़ वापस नहीं आती,
कुछ सपने बेनाम ही मिट जाते हैं।
पर जो हमारे हाथों की पहुंच में है,
उसके लिए तो पूरी मेहनत चाहिए।

सूरज के उगने को कोई रोक नहीं सकता,
हर कदम आगे बढ़ाना जरूरी है।
रास्ते मुड़ सकते हैं, उम्मीदें डगमगा सकती हैं,
फिर भी चाह का दीपक जलता रहना चाहिए।

डर साज़िश कर सकता है, वक़्त आज़माएगा,
पर कोशिश करना हमारा कर्तव्य है।
ईमानदारी से छुए गए हर तारे की चमक,
हमारे भीतर एक रोशनी बनकर जलेगी।

जी आर कवियुर 
२२ ०६ २०२५

ग़ज़ल "उसका दीदार"

ग़ज़ल "उसका दीदार"

वो चाँद सा चेहरा नज़रों के सामने आ गया,
दिल का वीराना भी गुलशन बनता चला गया।

खामोश लबों पर जब उसका नाम आया,
हर साज़ दिल का खुद-ब-खुद गुनगुनाया।

नज़रों में ठहरी हुई चाँदनी की तरह,
उसका अक्स दिल के आईने पे छा गया।

पलकों की झीलों में ख़्वाबों के फूल खिले,
एक ही लम्हा उम्र भर पर भारी हो गया।

तेज़ साँसों में भी एक राग सुनाई दिया,
जब वो पास आया तो सब कुछ नया हो गया।

हवा ने भी उसके ज़ुल्फ़ों से सीखा चलना,
और वक़्त खुद रुक कर उसको तकता गया।

‘जी आर’ के नग़्मों में है उसका दीदार,
हर मिसरे में एक चुप सा इज़हार रह गया।

जी आर कवियुर 
२१ ०६ २०२५

Friday, June 20, 2025

योगा सर्व श्रेष्ठ

सुबह की शांति, उगता सूरज,
एक सोच से करें हम आरंभ सच्चा।
गहरी साँस, एक मौन मुद्रा,
भीतर बहती शांति की धारा।

तन को फैलाएं, मन हो प्रसन्न,
प्रकृति की लय में बहे जीवन।
झुके ये शरीर, गाए आत्मा,
छोटे पलों में सुख समा।

प्राचीन कला, ध्यान का ज्ञान,
जोड़े दिलों को, दे स्नेह भान।
एक साथ हम सब चलें आगे,
मनाएँ मिलकर यह विशेष योग का दिन।

“आसमान से गिरी एक बूँद”

 “आसमान से गिरी एक बूँद” 

विचारों के आकाश में एक बादल चलता है,
मन भारी हवाओं में चुपचाप भीगता है।
शब्दों के बिना वह बोझ उठाता है,
और एक चेहरे पर बरसात बनकर गिरता है।

मन खुलता है बिना कहे,
गहराइयाँ धीरे-धीरे उभरती हैं।
दुखों से भरे आकाश से,
आँसू खारे हो जाते हैं।

एक यात्रा चुपचाप पूरी होती है,
जैसे कभी शुरू हुई थी।
गिरी हुई बूँदों में,
एक ख़ामोशी गीत बन जाती है।

जी आर कवियुर 
२० ०६ २०२५

Wednesday, June 18, 2025

तेरे लिए तरसा (ग़ज़ल)

तेरे लिए तरसा (ग़ज़ल)

मैं तेरे पास आने के लिए तरसा
मैं तन्हाई के रंगों में सदा तरसा

चली जाती है हर एक सांस तेरे नाम लेकर
मैं तेरे इश्क़ के पहलू में यूँ ही तरसा

तेरी ख़ामोशियों में भी थी एक आवाज़ मेरी
वो सुन न सका, मैं हर लम्हा समझ कर तरसा

तेरे साये को भी पाया नहीं उम्र भर
धूप में जलता रहा, छाँव की तरह तरसा

वो जिसे चाँद कहें, मेरी रातों का अंधेरा था
मैं उजालों की तलाश में हर बार तरसा

अब "जी आर" की ज़ुबाँ भी ख़ामोश है हर शाम
जो कह न सका, उसी बात के लिए तरसा

जी आर कवियुर 
१८ ०६ २०२५

अकेले विचार – 75

 अकेले विचार – 75



प्रसिद्धि की चाह में जो भलाई हो,

वो रेत पर लिखी कहानी है।

खामोशी में जो सेवा करे,

वो सच्ची इंसानी निशानी है।


काग़ज़ के फूल भले ही चमकें,

पर उनमें खुशबू कहाँ से लाएँ?

सुगंध बिन बोले बिखरती है,

जिन्हें सब महसूस तो कर पाएं।


जो प्रार्थना दिल से न निकले,

वो केवल शब्दों की चाल है।

सच्ची भक्ति ही पहुँचती ऊपर,

बाकी सब तो केवल सवाल है।


जी आर 

कवियुर 

१८ ०६ २०२५

Sunday, June 15, 2025

अकेले विचार – 74

अकेले विचार – 74

"कल का अख़बार"

क्यों भागे उस हवा के संग,
जो चली नहीं अभी किसी रंग?
सपनों की होती है अपनी राह,
किसने देखा कल की चाह?

चिंताएँ आती हैं जैसे धुंध सुबह की,
पर रुकती नहीं किसी एक दिशा की।
उम्मीदें जन्मती हैं इस पल में,
ना कि डर में छुपे कल में।

शांति तभी मिलती है जब मन शांत हो,
ना कि किसी अनदेखे भ्रम की खोज हो।
इस साँस को जी ले सच्चाई से,
कल खुद बताएगा अपनी कहानी सबसे।

जी आर कवियुर 
१६ ०६ २०२५

अकेले विचार – 73

अकेले विचार – 73

अगर आज को तुम खो दोगे,
कल के सपने खो ही जाओगे।
हर सुबह एक मौका देती,
जोश से दिन को रौशन करती।

बीते पल बस याद बनेंगे,
नए इरादे साथ चलेंगे।
अतीत तो बस छाया ठहरी,
वर्तमान में है रोशनी सारी।

कल का क्या है, धुंध ही धुंध,
जीवन बनता है आज के संग।
जैसा जिए हो आज का पल,
वैसी ही होगी भविष्य की हलचल।

जी आर कवियुर 
१३ ०६ २०२५

Friday, June 13, 2025

अकेले विचार – 72


अकेले विचार – 72


सच्चाई से मिलने वाले अपने

सच एक शांत रास्ते पर चल सकता है,
दूर तालियों या दुनिया की भीड़ से।
लोग बदल सकते हैं, आवाज़ें धीमी हो सकती हैं,
पर ईमानदारी कभी डरती नहीं।

झूठी सराहना चारों तरफ गूंज सकती है,
लेकिन सच्चे दिल उन्हीं को समझते हैं जो सच्चे हों।
विश्वास खुले आकाश में पनपता है,
बिना छल के शब्दों से जुड़ता है।

कुछ ही लोग साथ रहेंगे, पर मजबूती से खड़े रहेंगे,
ऐसे हाथ जो केवल सच्चाई को थामते हैं।
जहाँ रोशनी हो, वहाँ अंधेरा नहीं टिकता —
सच के साथ चलने वाले ही अपने बनते हैं।

जी आर कवियुर 
१३ ०६  २०२५

अकेले विचार – 73

अकेले विचार – 73

अगर आज को तुम खो दोगे,
कल के सपने खो ही जाओगे।
हर सुबह एक मौका देती,
जोश से दिन को रौशन करती।

बीते पल बस याद बनेंगे,
नए इरादे साथ चलेंगे।
अतीत तो बस छाया ठहरी,
वर्तमान में है रोशनी सारी।

कल का क्या है, धुंध ही धुंध,
जीवन बनता है आज के संग।
जैसा जिए हो आज का पल,
वैसी ही होगी भविष्य की हलचल।

जी आर कवियुर 
१३ ०६ २०२५

Thursday, June 12, 2025

अकेले विचार – 71

अकेले विचार – 71

“मन का उजाला”

खुशी न धन में, न नाम में है,
न ही महलों और आराम में है।
सच्चा सुख तो मन में बसता,
जो खुद से खुद ही जुड़कर हंसता।

विचार हमारे जब निर्मल होते,
अंधेरे में भी दीपक होते।
दुनिया बदले, हो तूफ़ान भारी,
भीतर की शांति ही सबसे प्यारी।

मुस्कान हमारी सोच से आती,
न कि चीजों से, ये बात सच्ची।
मन को सिखाओ अच्छाई देखना,
तो जीवन में आएगा सुख रचना।

जी आर कवियुर 
१२ ०६ २०२५

Wednesday, June 11, 2025

घर की आत्मा

घर की आत्मा

ईंट-पत्थरों से बना कोई ढांचा नहीं है यह,
यह साँस लेता है — आत्मा की गहराई से बहता रहस्य है यह।
हर दीवार में एक धड़कन छुपी होती है,
हर आवाज़ में कोई याद गूँजती है।

हँसी और आँसू यहाँ हल्के नहीं होते,
थकी यादों को भी नींद नहीं मिलते।
चाय की गरमाहट में जागती रातें,
मौन में गाती हैं बीते पलों की बातें।

दरवाज़ों पर वक्त ने छोड़े हैं निशान,
सीढ़ियाँ पहचानती हैं बीते हुए सामान।
रसोई अब भी महकती है पुराने सुघंध से,
निशब्द लौटते हैं पल, अपने स्पर्श से।

घर खुला हो तब भी कुछ मौन छिपा रहता है,
भीतर बहता है एक संगीत जैसा लय।
खिड़कियाँ रोती हैं, बग़ीचा करता है सिसकियाँ,
एकाकी रातें गाती हैं विरह की कविताएँ।

शरीर बूढ़ा होता है, झुकता चला जाता है,
पर दिल अपनी जगह अडिग रह जाता है।
नई हँसी रोशनी बनकर फैलती है,
पर विश्वास वही पुराना ठहर जाता है।

यह घर नहीं — एक जीव है अकेला,
रिश्तों का मूक साक्षी, सबसे प्यारा झरोखा।
यहाँ जीवन ने अपने चक्कर काटे हैं बारंबार,
सहन किया सब — संध्या की शांति बनकर अपार।

जी आर कवियुर 
११ ०६ २०२५

अकेले विचार – 70

अकेले विचार – 70

समस्याएँ तूफ़ानों की तरह आती हैं, भयंकर और जोरदार,
अपने पीछे संदेह और बादलों का एक निशान छोड़ जाती हैं।
लेकिन सभी तूफ़ानों की तरह, वे टिकती नहीं हैं,
वे गुज़र जाती हैं, और अतीत को अतीत में छोड़ जाती हैं।

वे हमें सबक सिखाती हैं, गहरे में छिपी हुई,
उन क्षणों में जब हम पूरी तरह से जाग रहे होते हैं या सो रहे होते हैं।
वे हमारी यात्रा को चिह्नित करती हैं, फिर फीकी पड़ जाती हैं,
हर गुज़रते दिन के साथ हमें और मज़बूत बनाती हैं।

वे जो हस्ताक्षर छोड़ती हैं, वह हमारे दिल में है,
एक याद दिलाता है कि हम कभी अलग नहीं होते।
समस्याएँ, लहरों की तरह उठती और गिरती हैं,
लेकिन उनके जागने पर, हम मज़बूती से खड़े रहते हैं।

जीआर कवियूर
१० ०६ २०२५


Tuesday, June 10, 2025

एकाकी विचार - 69

एकाकी विचार - 69


तेरे आने पर अश्रु थे आँखों में,
मुस्कानें थीं हर एक साँसों में।
नन्हें पाँवों की आहट बनी गीत,
घर में गूँजा स्नेह संगीत।

समय की रेखा चुपचाप चली,
सपनों ने अपनी दुनिया बुन ली।
फिर एक दिन सब मौन हुआ,
प्राण पंख लगा नभ को छू गया।

स्वर्ग ने दी मीठी पुकार,
धरती रोई उस अंतिम वार।
यादें बन कर साथ रहीं,
प्रेम की गाथा अमर कहीं।

जी आर कवियुर 
१० ०६ २०२५

Monday, June 9, 2025

"साज़ भी चुप हैं अब" (ग़ज़ल)

 "साज़ भी चुप हैं अब" (ग़ज़ल)
 जी.आर.कवियुर 


साज़ भी चुप हैं अब, गीत भी थम गए,
जिनके सुर थे सजे, वो कहीं गुम गए।

संगीत के राही, फन के उस्ताद थे,
रेल के उस सफ़र में सभी झूम गए।

वक्त रुका था उस वीराने स्टेशन पे,
संग तबले के, सितार के सरगम गए।

जो था दिल का साजिंद, वो ना रहा,
अब धड़कनों में भी जैसे कुछ कम गए।

मौत आई तो संगीत भी रो पड़ा,
हम तो बस यादों के ही सनम बन गए।

अब 'जी.आर.' की ग़ज़ल भी है वीरान सी,
जिसमें इक यार के बिन न सुर-नग़्म गए।



चंद्र: एक गाथा

चंद्र: एक गाथा 

कहते हैं कवि — कलंक है चंद्रमुख पर,
फिर भी अंधेरे में बिखरता उसका स्वर।
माँ दिखाती है बच्चे को अंबर का मामा,
उसकी आँखों में चमकता है मधुर नज़ारा।

प्रेमियों के दिल में चुपचाप रात महके,
छाया में चांदनी की भाषा बहके।
शरद की हवा में हँसा चंद्र कभी,
गणेश के लिए बनी वह हँसी विपत्ति चतुर्थी।

व्रत समाप्त होते ही आलोक फूटता है,
स्मृतियों में वो चंद्रमुख फिर से झलकता है।
पतिव्रता नारी प्रार्थना करे मन से,
मध्यरात्रि में दीप जले नयन तल से।

जब "शक्ति स्थल" पर लिखा गया नाम,
भारत ने चंद्र पर पाया अपना स्थान।
इन्द्र या सूर्य चाहे छिप जाएं कहीं,
पर चंद्र की यादें अमर रहें सदा यहीं।

जी आर कवियुर 
१० ०६ २०२५

हे सूर्यदेव, प्रकाश के साक्षी

हे सूर्यदेव, प्रकाश के साक्षी 

हे सूर्यदेव, प्रकाश का सागर,
जीवन का स्रोत, मार्गदर्शक पुकार।
गायत्री मंत्र हृदय की धड़कन में बहे,
भक्ति जागे हर नज़र की आंख में।

भोर होते दूर धरती को पुकारो,
किरणों से खुशियाँ, नया जीवन दो।
पेड़ों और जंगलों में रंग खिले,
तेरे स्पर्श से हरियाली मिले।

ग्रह तेरे चक्र में घूमते हैं,
मौन में भी जीवन को देते हैं।
हवा और बारिश में तेरा संगीत बजे,
तेरी चमक सृष्टि को सजाए।

भारत भूमि में उजला दीपक तू,
मंत्रों में तेरा पावन रूप गूंजे।
"ॐ भूर्भुवः" की गूंज सुन जब,
हर दिल में ज्योति तेरी जलती रहे।

जी आर कवियुर 
०९ ०६ २०२५

Sunday, June 8, 2025

एकाकी विचार - 68

एकाकी विचार - 68

उनके पास यह देखने का समय नहीं था कि कौन इंतज़ार कर रहा है,
क्षणों का पीछा करते हुए, भाग्य से दौड़ते हुए।
आँखें आगे टिकाए, वे तेज़ी से चले,
उन दिलों को भूल गए जिन्हें उन्होंने लहूलुहान कर दिया।

जो लोग दिन-रात इंतज़ार करते रहे,
कोमल आशा के साथ, मज़बूती से थामे रहे।
खामोश ताकत में, उन्होंने अपना दर्द छुपाया,
जैसे फूल गर्मियों की बारिश के लिए तरसते हैं।

लेकिन जब व्यस्त लोगों ने मुड़कर देखा,
वहाँ कोई प्रतीक्षा करने वाली आत्मा नहीं थी।
समय उड़ गया था, दरवाज़े बंद हो गए थे,
खोया हुआ पल, हमेशा के लिए जम गया।

जी आर कवियुर 
०९ ०६ २०२५

Saturday, June 7, 2025

एकाकी विचार - 67

एकाकी विचार - 67

सपनों पर ना लगाओ बंदिश,
बहने दो जैसे खुली नदी निश।
पंख उड़ते हैं नभ छूने,
सिर्फ फड़फड़ाने को नहीं जीने।

चिंगारी रोशनी भर देती है,
छोटी आशा भी रंग लाती है।
हर कदम एक ज़ंजीर तोड़ता,
बरसात के बाद सूरज चढ़ता।

ताक़त खुद पर चौंका देती है,
इरादा चोटी तक ले जाती है।
नामुमकिन कहना छोड़ दो,
दौड़ते दिल पर्वत मोड़ दो।

जी आर कवियुर 
०७ ०६ २०२५

पढ़ना - सबक और किताबों का गीत

पढ़ना - सबक और किताबों का गीत

हमें पढ़ना चाहिए, हमें पढ़ना चाहिए, हमें हर दिन पढ़ना चाहिए,
हमें अपने दिल और दिमाग पर नई रोशनी डालनी चाहिए।
जब कोई हमारी मदद करने वाला न हो, तो किताबें साथ होती हैं,
जीवन की यात्रा के पथ पर, वे उज्ज्वल मार्गदर्शक बन जाती हैं।

किताबें विचारों के नए रास्ते खोलती हैं,
कहानियों के माध्यम से विचार, विचारों के भावनात्मक धरातल पर।
बचपन में चिढ़ाना, जवानी में अच्छा महसूस कराना,
बड़ों के लिए दोस्त बनना स्नेह है

हर पढ़ना एक नई दुनिया खोलता है,
विचार और सपने एक साथ आते हैं, मन में फूल खिलते हैं।
पढ़ें ताकि हम जीवित रह सकें,
एक भी शब्द छोड़े बिना,
पढ़ना सिर्फ पढ़ना नहीं है, यह जीवन का दिल है।

जी आर कवियूर
07 06 2025

युगों-युगों से समय की फुसफुसाहट

युगों-युगों से समय की फुसफुसाहट

समय शिकार की लय थी,
आग ने रात को चीर दिया,
ऊपर तारे - अदम्य, अस्पष्ट -
समय जीवित रहने का साधन था, स्मृति नहीं।

मिट्टी की पटियाओं पर चाँद के भाव अंकित थे,
सूर्यघड़ी मंदिर की दीवारों को चूम रही थी,
पिरामिड शाश्वत समय की ओर इशारा कर रहे थे -
समय दिव्य था, सितारों में लिखा हुआ।

तीर ब्रह्मांडीय समय में हवा में रुक गए,
धर्म ने इच्छा से संघर्ष किया,
होमर ने गाया, व्यास ने बुना -
समय भाग्य और युद्ध की कहानी बन गया।

उसने फुसफुसाया: "पृथ्वी चलती है" -
लेकिन चर्चों ने उसका नाम जला दिया।
गैलीलियो ने तारे देखे, लेकिन जेल भी देखी।
सुकरात ने झूठ नहीं, जहर पिया।
जियोर्डानो ब्रूनो राख बन गया -
समय ने सत्य को दंडित किया... लेकिन हमेशा के लिए नहीं।

फिर भी गोल पृथ्वी घूमती रही।
समय इंतजार करता रहा - सत्य हमेशा लौटता है।

 एस्ट्रोलैब ने तारों को मापा,
संत जाति और धर्म से परे गाते थे,
लियोनार्डो ने उड़ते समय का रेखाचित्र बनाया,
मोमबत्ती की रोशनी में ज्ञान खिलता था।

भाप ने समय को तेज़ कर दिया,
मशीनें इसके संदेशवाहक बन गईं,
पॉकेट घड़ियाँ कलाई पर राज करती थीं -
जीवन टिक-टिक के पीछे चलता था।

युद्धों ने सालों को निगल लिया,
गाँधी मौन में समय के साथ चले,
हिरोशिमा ने ग्रह को थाम दिया,
चाँद पर एक पदचिह्न ने कहा:
"हम अभी भी समय का उपयोग करना सीख रहे हैं।"

समय कांच की स्क्रीन पर स्क्रॉल करता है,
AI वह लिखता है जो हम भूल जाते हैं,
बचपन बादलों में सिमट जाता है,
हम समय का पीछा करते हैं, लेकिन क्या हम इसे महसूस करते हैं?

हम मशीनों से पूछते हैं: "समय क्या है?"
वे जवाब देते हैं, लेकिन आश्चर्य नहीं करते।
समय हमसे भी ज़्यादा समय तक जीवित रह सकता है,
जब तक कि हम इसे अर्थ न दें।

सत्य को एक घंटे में चुप करा दिया जा सकता है,
लेकिन समय इसे हमेशा याद रखता है।
घड़ियाँ टूट जाती हैं, स्क्रॉल जल जाते हैं -
लेकिन समय... हमेशा समझे जाने का इंतज़ार करता है। 

जीआर कवियूर
07 06 2025

Thursday, June 5, 2025

एकाकी विचार - 63

एकाकी विचार - 63

प्रकाश और प्रेम
जब अँधेरे में एक किरण पड़ती है
डर चुपचाप भाग जाता है।
द्वेष रखने की कोई ज़रूरत नहीं है,
केवल अच्छाई ही बदलेगी।

क्रोध बढ़ सकता है,
प्रेम, साहस के साथ इसे ठंडा करें।
नज़र न खोएँ, एक दूसरे की मदद करें,
चलो अच्छाई के साथ रास्ता बदलें।

जब द्वेष गाते हैं, तो प्रेम को गाने दें,
अपराध को फीका होने दें और हृदय को शुद्ध करें।
शांति में प्रेम है,
चलो प्रकाश के मार्ग पर चलें

जी आर कवियुर 
०६ ०६ २०२५

हमारी धरती, हमारी ज़िम्मेदारी"(विश्व पर्यावरण दिवस गीत )

हमारी धरती, हमारी ज़िम्मेदारी"
(विश्व पर्यावरण दिवस गीत )

धरती है अपना प्यारा घर, हरियाली से भरी है भर,
पेड़-पौधे, नदियाँ सुंदर, साथ हमारे रहते हैं हर पल।
हवा जो हम साँस में भरते, भोजन जो हम रोज़ है खाते,
प्रकृति हमें ये सब कुछ देती, सादगी में खुशियाँ बसती।

चिड़ियों की मीठी चहक सुनो, फूलों की मुस्कान को चुनो,
पर धुआँ, कचरा, पेड़ों की कटाई,
इनसे आती है दुख की छाया भाई।

छात्र हैं हम, अब जागें सभी,
साफ़ करें धरती, लगाएँ कलियाँ नई।
संरक्षण हो पर्यावरण का रास्ता यही,
हर दिन बनाएं दुनिया को और भी सही।

जी आर कवियुर 
०५ ०६ २०२५

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Wednesday, June 4, 2025

एकांत विचार – 62

एकांत विचार – 62


ज़िन्दगी एक सफर है बदलते राहों का,

कभी ऊँचाई, कभी गहराईयों का.

काले बादल छिपा सकते हैं सुबह,

जल्द ही चमक उठेगी नई रौशनी.


हार दस्तक देती है चुपचाप दरवाज़े पर,

अंदर का हौसला बना देता है परवाज़.

हर आँसू एक सिख देती है,

हर मुश्किल नई दिशा दिखाती है.


रास्ता कठिन लगे तो भी आशा थाम लो,

अंधेरे में भी साहस बनता है रोशनी.

आज गिरे हो, कल उड़ान भरोगे,

यक़ीन रखो, मंज़िल करीब ही होगी.


जी आर कवियुर 

०४ ०६ २०२५

Monday, June 2, 2025

एकांत विचार – 61

एकांत विचार – 61

सलाहें आती हैं अलग-अलग ढंग,
कुछ दिखाएँ रौशनी हर एक रंग।
कुछ बस होती हैं दिखावे की बात,
कुछ देती हैं दिल को राहत की बात।

कोई सिखाए, बढ़ाए सोच,
कोई बदले बाहर की खोज।
चाहे कारण हों थोड़े धुंधले,
सच की आहट मिलती उन शब्‍दों से।

कोमल हो या थोड़ी सख्त,
ज्ञान बने तो बात है पक्की।
हर आवाज़ कुछ सिखा सकती है,
रास्ता चुनना अपनी ही शक्ति।

जी आर कवियुर 
०३ ०६ २०२५

एकांत विचार – 60

एकांत विचार – 60

बीता कल कुछ सिखा गया,
आज कई सवाल दे गया।
पल रेत जैसे फिसलते हैं,
वक़्त चुपचाप बदलते हैं।

कल की आँखों में है आस,
सपनों में छुपा है प्रकाश।
ज़ख़्म तो भर जाते हैं धीरे,
मुस्कानें लौटें नमी को चीरके।

हर दिन एक नयी कहानी है,
हर मोड़ ज़रा सी निशानी है।
डर को पीछे छोड़ चलो,
ज़िंदगी खुद एक पाठशाला है।

जी आर कवियुर 
०३ ०६ २०२५



एकांत विचार – 58 & 59

एकांत विचार – 58


ज़िंदगी लंबी हो — यही तो चाहत है सबकी,
पर हर पल को जीना — ये ख्वाहिश है कम की.
दिल में हो प्यार, आंखों में समझ,
हर मोड़ पर मिल जाए कुछ सच।

हवा की तरह हो दया का रंग,
हर रिश्ता बने कोई मधुर संग।
सिर्फ सांसें नहीं, हो हर पल जगा,
जो भी मिले, उसे दिल से लगा।

पल हों मीठे, मुस्कान साथ हो,
दुख भी हो तो कोई हाथ हो।
समय बीते चाहे जैसे भी,
अर्थ मिले तो जीवन खास भी।

जी आर कवियुर 
३० ०५ २०२५

एकांत विचार – 59

चाहे कोई तुम्हारा मज़ाक उड़ाए, फिर भी दयालु रहो,
अगर कोई तुम्हें पीछे छोड़ दे, फिर भी सही राह चुनो।
जो बिना सोचे तुम्हें दुःख पहुंचाए,
तब भी प्यार का रास्ता अपनाए।

अगर दुःख तेज़ आंधी बनकर आए,
और दिल को चुपचाप रुलाए,
तो भी ग़ुस्से को मत आने दो,
दुनिया को शांति का चेहरा दिखाओ।

हर बार माफ़ करो, फिर से माफ़ करो,
ताकि दिल में भगवान का प्यार झलके।
जो माफ़ करते हैं, भगवान उनके पास रहते हैं,
उनकी राह हमेशा आशीर्वादों से भरी रहती है।


जी आर कवियुर 
०२ ०६ २०२५

Sunday, June 1, 2025

तेरी परछाई में ( ग़ज़ल)

तेरी परछाई में ( ग़ज़ल)  

दिल के आईने में छाया बनकर तू आई है
हर एक साँस में बस तेरी ही परछाई है

तेरे ख़्वाबों की बारिश में भीगते हैं हम
तेरी याद हर लम्हे में भर लाई है

जो कहा न जा सका लफ़्ज़ों में कभी
तेरी ख़ामोशी ने वो बात समझाई है

तू कहीं भी हो मगर दिल में रहे यूँ ही
तेरे बिन भी इस दिल को रौनक आई है

हर दुआ में तुझे माँगा है इस दिल ने
तू ही चाहत, तू ही मेरी खुदाई है

'जी आर' ने हर जज़्बात तुझसे ही तो पाई है
तू नज़्मों में ढली, तू ही मेरी रुस्वाई है


जी आर कवियुर 
०२ ०६ २०२५

"तूने कहा"(ग़ज़ल)

"तूने कहा"(ग़ज़ल)

मन के साज़ पे दर्द ही दर्द बजा — तूने कहा
अब इस दिल का कोई नहीं बचा — तूने कहा

जो सपने हमने संग देखे थे हर रात में
सब कुछ था पर वो मेरा न रहा — तूने कहा

ठंडी शामों में तेरा साथ जो रहता था
अब वो साया भी नहीं रहा — तूने कहा

कभी जो वादा किया था 'न भूलेंगे हम'
आज वो भी बस धोखा था — तूने कहा

‘जी आर’ की कलम में ये प्यार जिंदा रहेगा
पर मेरा नाम अब मिट गया — तूने कहा

जी आर कवियुर 
०३ ०६ २०२५