Monday, June 9, 2025

चंद्र: एक गाथा

चंद्र: एक गाथा 

कहते हैं कवि — कलंक है चंद्रमुख पर,
फिर भी अंधेरे में बिखरता उसका स्वर।
माँ दिखाती है बच्चे को अंबर का मामा,
उसकी आँखों में चमकता है मधुर नज़ारा।

प्रेमियों के दिल में चुपचाप रात महके,
छाया में चांदनी की भाषा बहके।
शरद की हवा में हँसा चंद्र कभी,
गणेश के लिए बनी वह हँसी विपत्ति चतुर्थी।

व्रत समाप्त होते ही आलोक फूटता है,
स्मृतियों में वो चंद्रमुख फिर से झलकता है।
पतिव्रता नारी प्रार्थना करे मन से,
मध्यरात्रि में दीप जले नयन तल से।

जब "शक्ति स्थल" पर लिखा गया नाम,
भारत ने चंद्र पर पाया अपना स्थान।
इन्द्र या सूर्य चाहे छिप जाएं कहीं,
पर चंद्र की यादें अमर रहें सदा यहीं।

जी आर कवियुर 
१० ०६ २०२५

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