(गुरुदेव श्री श्री से प्रेरणा)
मौन की गहराई में चलता है मन,
भीतर का उजाला बनता है धन।
ध्यान में बैठो, छोड़ो शोर,
मिलता है भीतर का सच्चा भोर।
विचार उठें तो भी ना डगमगाओ,
धैर्य से फिर से भीतर समाओ।
हर श्वास कहे, “ठहरो ज़रा,”
मिलता है वहाँ सुकून भरा।
भीतर की ये यात्रा अनमोल है,
जहाँ बस आत्मा का बोल है।
जब सब छूटे, रह जाए तू,
तब ही मिलेगा सत्य रूप तू।
जी आर कवियुर
29 06 2025
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