Saturday, June 28, 2025

फैलता आनंद

फैलता आनंद
 ( जी आर कवियुर 
२८ ०६ २०२५)

जब बात करो आनंद की,
तो मन में रुकता है उसकी छवि।
यह छोटी-सी लौ नहीं है बस,
यह सूरज है जो चाँद को भी जगा दे।

मोमबत्ती थोड़ी देर को जलती है,
फिर उसकी रौशनी धीरे-धीरे बुझ जाती है।
पर ज्ञान फैले जैसे जंगल की आग,
वह कभी छुप नहीं सकता, सब तक पहुँच जाती है।

ज्योति बनकर फैलती है यह, अकेले नहीं जलती,
ज्ञान की चिंगारी ही जगाती है सोई भीड़ को।
जब दिल एक साथ रोशन होते हैं,
तो आनंद बहता है जैसे विशाल समुद्र की लहरें।

— गुरुदेव श्री श्री के संदेश से प्रेरित

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