घने वन के मौन से निकली शांति की धारा,
ध्यान में लीन ऋषियों की गूढ़ विचारधारा।
कृष्ण की बंसी से निकला मधुर स्वर,
प्यार की रागिनी छेड़ता हर एक प्रहर।
मंदिरों में गूंजते जप के सुर,
नदियों में बहती ज्ञान की लहर।
धर्म की वाणी दिलों में बसती,
तारों-सी चमकती, दिव्यता बरसती।
कबीर के शब्दों की निर्मल पुकार,
गीता की वाणी में सत्य का सार।
अब मैं भी मिलाता हूँ अपना स्वर,
सनातन पथ पर प्रेम से भरा ये सफ़र।
जी आर कवियूर
२८•०६•२०२५
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