( जी आर कवियुर
२८ ०६ २०२५)
सत्य की बेल से जीवन जुड़ा रहता है,
फलदायी शाखाएँ उसमें पुष्ट होती जाती हैं।
बिना जड़ के कोई शाखा नहीं बढ़ती,
प्रेम में ही जीवन की रेखा रची जाती है।
वचनों से हृदय में आनंद भरता है,
पारस्परिक प्रेम ही सच्चा आदेश होता है।
चयन हुआ है अमर फल देने हेतु,
जीवन में चमत्कार तब खिलते हैं शांत रूप से।
जब संसार ठुकराए, डर की ज़रूरत नहीं,
सत्य का आत्मा स्वयं साक्षी बन जाता है।
आत्मा के संग जो एकता बनी रहे,
तो आरंभ से प्रतीक्षित प्रेम ही मित्रता कहलाती है।
— यूहन्ना 15 अध्याय से प्रेरित एक मननशील कविता
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