Monday, June 9, 2025

"साज़ भी चुप हैं अब" (ग़ज़ल)

 "साज़ भी चुप हैं अब" (ग़ज़ल)
 जी.आर.कवियुर 


साज़ भी चुप हैं अब, गीत भी थम गए,
जिनके सुर थे सजे, वो कहीं गुम गए।

संगीत के राही, फन के उस्ताद थे,
रेल के उस सफ़र में सभी झूम गए।

वक्त रुका था उस वीराने स्टेशन पे,
संग तबले के, सितार के सरगम गए।

जो था दिल का साजिंद, वो ना रहा,
अब धड़कनों में भी जैसे कुछ कम गए।

मौत आई तो संगीत भी रो पड़ा,
हम तो बस यादों के ही सनम बन गए।

अब 'जी.आर.' की ग़ज़ल भी है वीरान सी,
जिसमें इक यार के बिन न सुर-नग़्म गए।



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