सपनों पर ना लगाओ बंदिश,
बहने दो जैसे खुली नदी निश।
पंख उड़ते हैं नभ छूने,
सिर्फ फड़फड़ाने को नहीं जीने।
चिंगारी रोशनी भर देती है,
छोटी आशा भी रंग लाती है।
हर कदम एक ज़ंजीर तोड़ता,
बरसात के बाद सूरज चढ़ता।
ताक़त खुद पर चौंका देती है,
इरादा चोटी तक ले जाती है।
नामुमकिन कहना छोड़ दो,
दौड़ते दिल पर्वत मोड़ दो।
जी आर कवियुर
०७ ०६ २०२५
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