बीता कल कुछ सिखा गया,
आज कई सवाल दे गया।
पल रेत जैसे फिसलते हैं,
वक़्त चुपचाप बदलते हैं।
कल की आँखों में है आस,
सपनों में छुपा है प्रकाश।
ज़ख़्म तो भर जाते हैं धीरे,
मुस्कानें लौटें नमी को चीरके।
हर दिन एक नयी कहानी है,
हर मोड़ ज़रा सी निशानी है।
डर को पीछे छोड़ चलो,
ज़िंदगी खुद एक पाठशाला है।
जी आर कवियुर
०३ ०६ २०२५
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