भीगी इस रात की तन्हा सी चुप्पी में
टूट के कुछ बोल उठे दिल की धड़कन में
रात भर जागती यादों का सफर देखा
तेरा चेहरा ही उभरा हर एक दर्पण में
हसरतें भीग गईं अश्कों की बारिश में
कोई उम्मीद न बची मेरी दामन में
वक़्त ने लूट लिया ख़्वाब सभी मेरे
बस तन्हाई ही बची इस मुसाफ़िर मन में
नींद तो आँखों से रूठी कई सदियों से
अब सुकूं ढूंढता फिर रहा हर क्षण में
लफ़्ज़ सिमटे हैं 'जी आर' की ग़ज़ल बनकर
ग़म भी रोने लगे उसकी हर एक छन में
जी आर कवियुर
२६ ०६ २०२५
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