विचारों के आकाश में एक बादल चलता है,
मन भारी हवाओं में चुपचाप भीगता है।
शब्दों के बिना वह बोझ उठाता है,
और एक चेहरे पर बरसात बनकर गिरता है।
मन खुलता है बिना कहे,
गहराइयाँ धीरे-धीरे उभरती हैं।
दुखों से भरे आकाश से,
आँसू खारे हो जाते हैं।
एक यात्रा चुपचाप पूरी होती है,
जैसे कभी शुरू हुई थी।
गिरी हुई बूँदों में,
एक ख़ामोशी गीत बन जाती है।
जी आर कवियुर
२० ०६ २०२५
No comments:
Post a Comment