ईंट-पत्थरों से बना कोई ढांचा नहीं है यह,
यह साँस लेता है — आत्मा की गहराई से बहता रहस्य है यह।
हर दीवार में एक धड़कन छुपी होती है,
हर आवाज़ में कोई याद गूँजती है।
हँसी और आँसू यहाँ हल्के नहीं होते,
थकी यादों को भी नींद नहीं मिलते।
चाय की गरमाहट में जागती रातें,
मौन में गाती हैं बीते पलों की बातें।
दरवाज़ों पर वक्त ने छोड़े हैं निशान,
सीढ़ियाँ पहचानती हैं बीते हुए सामान।
रसोई अब भी महकती है पुराने सुघंध से,
निशब्द लौटते हैं पल, अपने स्पर्श से।
घर खुला हो तब भी कुछ मौन छिपा रहता है,
भीतर बहता है एक संगीत जैसा लय।
खिड़कियाँ रोती हैं, बग़ीचा करता है सिसकियाँ,
एकाकी रातें गाती हैं विरह की कविताएँ।
शरीर बूढ़ा होता है, झुकता चला जाता है,
पर दिल अपनी जगह अडिग रह जाता है।
नई हँसी रोशनी बनकर फैलती है,
पर विश्वास वही पुराना ठहर जाता है।
यह घर नहीं — एक जीव है अकेला,
रिश्तों का मूक साक्षी, सबसे प्यारा झरोखा।
यहाँ जीवन ने अपने चक्कर काटे हैं बारंबार,
सहन किया सब — संध्या की शांति बनकर अपार।
जी आर कवियुर
११ ०६ २०२५
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