Wednesday, June 18, 2025

तेरे लिए तरसा (ग़ज़ल)

तेरे लिए तरसा (ग़ज़ल)

मैं तेरे पास आने के लिए तरसा
मैं तन्हाई के रंगों में सदा तरसा

चली जाती है हर एक सांस तेरे नाम लेकर
मैं तेरे इश्क़ के पहलू में यूँ ही तरसा

तेरी ख़ामोशियों में भी थी एक आवाज़ मेरी
वो सुन न सका, मैं हर लम्हा समझ कर तरसा

तेरे साये को भी पाया नहीं उम्र भर
धूप में जलता रहा, छाँव की तरह तरसा

वो जिसे चाँद कहें, मेरी रातों का अंधेरा था
मैं उजालों की तलाश में हर बार तरसा

अब "जी आर" की ज़ुबाँ भी ख़ामोश है हर शाम
जो कह न सका, उसी बात के लिए तरसा

जी आर कवियुर 
१८ ०६ २०२५

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