Saturday, June 21, 2025

ग़ज़ल: तू एक किताब थी

ग़ज़ल: तू एक किताब थी



तू एक किताब थी जिसे पढ़ने की तमन्ना थी,
हर पन्ने में कुछ राज़-ए-मोहब्बत की रवानी थी।


तेरे लफ़्ज़ों से महकते थे जज़्बातों के गुलशन,
हर हर्फ़ में दिल की किसी गहरी कहानी थी।


कभी तू बारिश की पहली बूँद सी महसूस हुई,
कभी तू चुप्पियों में उठती इक पुरानी निशानी थी।


तेरी ख़ामोशी ने भी इक नग़्मा गुनगुनाया था,
वो धड़कनों से जुड़ी एक मीठी रवानी थी।


तेरे पन्नों में मैं हर रोज़ थोड़ा और खोता गया,
तू पढ़ते-पढ़ते दिल के बहुत पास आनी थी।


'जी आर' ने जब भी तुझे आँखों से पढ़ा दिल से,
हर बार लगा तू ही मेरी रूह की कहानी थी।

जी आर कवियुर 
२२ ०६ २०२५

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