सच्ची सौगात!
लहरों ने तोड़ दिया है मन का किनारा।
शत्रु घेरें, लेकिन तेरे सहारा में,
मैंने तुझमें पाया है सच्चा सहारा।
लज्जा, अपमान मैंने सहा है,
शहर के द्वार पर बना मज़ाक।
रूठा हर कोई, न कोई सखा है,
फिर भी तुझसे ही जुड़ा हर राख।
मुझे बचा ले, न डूबने दे प्रभु,
तेरी दया है सबसे प्यारी बात।
मैं गाऊँगा तेरा गुणगान हर सुबह,
तेरे नाम में मिले सच्ची सौगात!
जी आर कवियुर
२८ ०६ २०२५
No comments:
Post a Comment