Thursday, July 31, 2025

अकेले विचार – 96

अकेले विचार – 96

तुम्हारा तन तुम्हारा साथ निभाए,
हर सुख-दुख में कदम बढ़ाए।
दर्द भी समझे, मुस्कान भी पाए,
हर रास्ते में तुम्हारे संग आए।

आराम दो जब थक जाए,
पोषण दो, जब ऊर्जा घट जाए।
चलने दो, साँस लेने दो,
भीतर की आवाज़ सुनने दो।

ये कोई वस्तु नहीं त्यागने की,
ये है शक्ति, आत्मा की झलक दिखाने की।
इससे प्रेम करो, ध्यान से जियो—
शरीर की देखभाल में जीवन बुनो।

जी आर कवियुर 
31 07 2025

Wednesday, July 30, 2025

अकेले विचार – 95

अकेले विचार – 95

मौन में विकास

बीज ज़मीन में छुपा रहता,
बिना आवाज़ के आगे बढ़ता।
जड़ें फैलतीं गहराई में,
हर दिन आती नई ताज़गी में।

पत्ता उगता पर कोई नहीं सुनता,
हरियाली चुपचाप जीवन बुनता।
जब पेड़ गिरता धरती हिलती,
पर कैसे बढ़ा — ये बात छिपती।

अंतिम पल गूंजता है तेज़,
शुरुआत जन्म लेती है मौन के सेज़।
चुपचाप आगे बढ़ते चलो,
और एक नया जहाँ बना डालो।

जी आर कवियुर 
30 07 2025

Tuesday, July 29, 2025

"भूल नहीं सकता"

"भूल नहीं सकता"

दूर कहीं धीरे-धीरे तुम
समय के क्षितिज पर जैसे एक सुमन।
यादें दिल में खिलती जातीं,
रातों में अश्क़ बनकर बह जातीं।

बदलते मौसम, ढलती शाम,
तेरे प्यार में बसता है मेरा नाम।
शब्दों से परे, वो कोमल स्पर्श,
आज भी देता है दिल को हर्ष।

ये यात्रा बन जाए तीर्थ कभी,
तेरे आँसू में बहूं मैं अभी।
आसमान साक्षी, खोया समय,
तेरी परछाई में बसा है जीवन मेरा।

जी आर कवियुर 
29 07 2025

Monday, July 28, 2025

अकेले विचार – 94

अकेले विचार – 94

दुनिया बोलती है सौ आवाज़ों में,
हर बात में न हो सच्चाई छिपी कहीं।
कुछ सच गुम हो जाते शोर में,
समझदार मन चलता है धीमे पथ में।

जो समझदार है, वो रुकना जानता है,
हर बात में उलझना नहीं मानता है।
हज़ार राहें दिखती हैं सामने,
हर मंज़िल न हो ज़रूरी अपने।

चमक में नहीं, शांति में खोजो रौशनी,
मन की आवाज़ है सच्ची दृष्टि।
जो सच में जानता है, वो शोर नहीं करता—
समझ की कला है क्या अनदेखा करना।

जी आर कवियुर 
29 07 2025

कारगिल विजय दिवस

कारगिल विजय दिवस

बर्फीली चोटियों पर चढ़े वीर जवान,
रात-दिन लड़े, किया देश का मान।
स्वतंत्रता की लौ उन्होंने जलाई,
सोई दुनिया, पर वो नींद न आई।

गूंज उठे पर्वत, गूंजा था सत्य,
न्याय के आगे झुका अन्याय का पथ।
रक्त बहा, पर सपना बचाया,
हर मोड़ पे जीवन को सच्चा बनाया।

ना डरे, ना रुके, बस आगे बढ़े,
धरती पर गौरव के अक्षर गढ़े।
हर क़दम पे वो इति‍हास रच गए,
सलाम उन वीरों को, जो अमर बन गए।

जी आर कवियुर 
26 07 2025

ग़ज़ल: दर्द की हकीकत

ग़ज़ल: दर्द की हकीकत

दिल की लगी हुई प्यास बुझा न सका कोई,
हँसते हुए लबों को सजा न सका कोई।

हर रोज़ बिछड़ने की कहानी है फ़िज़ाओं में,
पर किसी ने दर्द को अश्क़ बना न सका कोई।

ख़ुशबू की तरह बिखरे तेरे यादों के आलम,
लेकिन उस महक को समेटा न सका कोई।

साया भी मेरा मुझसे डरने लगा है अब,
इतना तन्हा कर गया, समझा न सका कोई।

तस्वीर में हँसी है, मगर आँखें हैं भीगी,
इस छलावे को अब तक पढ़ा न सका कोई।

हर शेर में है दर्द, ये कहता है 'जी. आर.',
पर दर्द की हकीकत दिखा न सका कोई।

जी. आर. कवियुर 
28 07 2025

Saturday, July 26, 2025

ज़ुल्फ़ों के साये में(ग़ज़ल )

ज़ुल्फ़ों के साये में
(ग़ज़ल )

ये दिल तेरी जुल्फ़ों के साये में,
हर ग़म को भूल जाए साये में।

तेरे करीब हर पल लगे हसीं,
खुशबू सी घुलती है साये में।

जो दर्द थे, सब धुंध बन गए,
तेरी नज़र जो पड़ी साये में।

रहती है एक रौशनी सी वहाँ,
जब तू उतरती है साये में।

तेरे बिना ये जहां वीरान है,
बस्ती सी बस गई साये में।

तेरे ज़िक्र में जी रहा है 'जी. आर.',
हर साँस है जुल्फ़ों के साये में।

जी आर कवियुर 
26 07 2025

दिल के फ़साने को" (ग़ज़ल)

दिल के फ़साने को" (ग़ज़ल)

कैसे बताएं दिल के फ़साने को,
कितनी मोहब्बत करते हैं हम तुम को।

हर एक मोड़ पर रोका है इस दिल ने ज़माने को,
मगर न रोक सका मैं याद में बहते अफ़साने को।

चुपचाप सह लिया हर वार वक़्त के बहाने को,
बस दिल ने थाम रखा है प्यार के निशाने को।

तेरे बिना अधूरी थी ज़िंदगी के दीवाने को,
अब सुकून देता है बस तेरा नाम जुबाने को।

छूट जाए अगर ये साथ, क्या कहें इस बहाने को,
ख़ुदा भी माफ़ नहीं करता टूटते पैमाने को।

अब ‘जी आर’ भी समझ चुका है इश्क़ के फ़साने को,
वो भूल नहीं सकता अब अपने दिल के दीवाने को।

जी आर कवियुर 
26 07 2025

अकेले विचार – 93

अकेले विचार – 93

अंधेरा चाहे जितना गहरा हो,
उजाले की किरण राह दिखाए।
एक छोटा दीपक जलता रहे,
मन में उम्मीद फिर से जगाए।

तूफ़ान आयें, रास्ते डगमगायें,
हौसला फिर भी साथ निभाए।
सन्नाटे में भी आवाज़ मिले,
भीतर की शक्ति सहारा बनाए।

रात ढल जाएगी, सुबह आएगी,
नए ख्वाब नज़रों में मुस्काएंगे।
आशा का दामन थामे रखना,
रोशनी फिर से पास आएगी।

जी आर कवियुर 
26 07 2025

अकेले विचार – 92


अकेले विचार – 92

आंधियाँ जब राह में आएं,
साहस की मशाल जलाएं।
आँसू बहें बिना कहे,
मन का बोझ चुपचाप ले जाएं।

अंधेरे जब गहराते हैं,
उजाले खुद को जताते हैं।
चोटी चाहे ऊँची हो,
इरादे पक्के बनाते हो।

छिन जाए जो पास था,
समझ कहीं गहरा मिलता सा।
घाव जो कल टीसते थे,
अब सच्चाई से परिचय देते।

जी आर कवियुर 
26 07 2025

Friday, July 25, 2025

आँसुओं की बारिश ( ग़ज़ल)

आँसुओं की बारिश ( ग़ज़ल)


मेरे आँसू बह रहे हैं, हर तरफ़ ये बारिशें हैं
सागर नमकीन हो गया है, तेरी याद की तन्हाई है

चाँद भी तनहा खड़ा है, बादलों की भीड़ में
जैसे कोई रूह भूली, किस ज़माने की परछाई है

हर सदा अब दिल में बसकर, गूंजती है रात भर
ख़ामुशी से जो मिली थी, वही सबसे गहरी साई है

खिड़कियाँ सब भीग जाती हैं तेरे ग़ुंचे ख़यालों से
तू नहीं फिर भी मेरे घर में तेरी आहट आई है

जिन लम्हों को भूलने की कर रहा हूँ कोशिशें
वो ही पल मेरी रगों में बन के कोई सच्चाई है

जी आर के दिल में अब तलक जलती है वो रौशनी
जो बुझी थी तेरे जाने पर, मगर अब तक समाई है

जी आर कवियुर 
26 07 2025

तेरी याद (ग़ज़ल)

तेरी याद (ग़ज़ल)


हर एक झलक में बसी सी कोई नज़र — तेरी याद
आँसू में डूबी हुई हर एक खबर — तेरी याद

शबनम सी पिघली हुई हर इक असर — तेरी याद
हँसी में भी छुपकर रही इक सफ़र — तेरी याद

धूपों में छांव सी बनकर चली वो तसव्वुर
हवा में भी घुलकर बसी इक नज़र — तेरी याद

अनकहे ख्वाबों की कविता में जो ढलती रही
हर मिसरे में बनती रही हमसफ़र — तेरी याद

क्या लौट आएगा फिर वो बीता हुआ बचपन
जिसकी सदा थी कभी मेरा घर — तेरी याद

"जी आर" की तन्हा सदा बनके बहती रही
जो दिल में बसी थी वो आख़िरी दर — तेरी याद

जी आर कवियूर
25 07 2025

Thursday, July 24, 2025

अकेले विचार – 91

अकेले विचार – 91

प्यार-सा गहना नहीं कोई,
इस दुनिया में अनमोल ही सही।
राजमुकुट भी फीका लगता है,
उस चमक के आगे कुछ नहीं।

मोती-रत्न की ज़रूरत नहीं,
दिल को मिलती जो राहत वहीं।
राजा भी झुक गया उसके लिए,
जिसमें हो आत्मशांति की बही।

ना मोल लगे, ना तोला जाए,
जो आत्मा को रौशनी दे जाए।
ईश्वर का वह अमूल्य खज़ाना,
जीवन को जिससे अर्थ मिल जाए।

जी आर कवियुर 
25 07 2025


अकेले विचार – 90

अकेले विचार – 90

सरल जीवन, सुखी हृदय

कभी किसी को हराने की कोशिश न कर,
उठाने को हाथ बढ़ा — यही है सच्चा संवर।
एक मुस्कान है अनमोल रत्न, बाँट इसे खुलकर।

दूसरों को गिराकर मत चढ़ ऊँचाई की राह,
चलो करुणा के चाँदनी पथ पर बिना कोई आह,
दया की डोरी थामे हम पहुँचेंगे दूर निगाह।

जो दुख में है, उसकी हँसी न उड़ाओ कभी,
हँसो साथ में जैसे वर्षा की बूंदें नर्मी से बही।
हँसी में झलके प्रेम की वह मीठी सी लहर अभी।

प्रकाश बाँटो, न भागो नाम के पीछे तुम,
हर आत्मा समान है इस जीवन के संगम में।
जहाँ अहंकार रुकता है, वहीं शांति फूलती है मन में।

जी आर कवियुर 
24 07 2025

हमको तेरे ग़म ने मारा (ग़ज़ल)

हमको तेरे ग़म ने मारा (ग़ज़ल)

हमको तेरे ग़म ने मारा, ज़िंदगी ने साथ मारा
हर खुशी से दूर रहकर, हर घड़ी ने मात मारा।

तेरी यादें जब भी आईं, आँख ने बस नम किया है
ख़्वाब टूटा, चैन खोया, हसरतों ने घात मारा।

वक़्त की रफ़्तार थमती, गर तुझे पा लिया होता
इक तुझे ही तो न पाया, बाक़ी सब हालात मारा।

दिल ने जब भी बात की है, नाम तेरा ही लिया है
लोग कहते हैं मोहब्बत, मगर इस जज़्बात मारा।

अब न शिकवा है किसी से, बस यही अफ़सोस बाकी
जिसको चाहा जान से भी, उसने ही दिन-रात मारा।

'जी आर' ने सब सहा चुपचाप, फिर भी ना शिकवा कोई किया
जिसे चाहा जान से बढ़कर, उसी ने हर बात मारा।

जी आर कवियुर 
24 07 2025

Tuesday, July 22, 2025

अकेले विचार – 89

अकेले विचार – 89

हर एक कदम में उम्मीदें बसती हैं,
ज़िंदगी की राहों में रौशनी सी दिखती हैं।
सिर्फ़ जीत को ही मंज़िल माना,
जोश से दिल को भर कर जाना।

अगर कोई गोल छूट भी जाए,
मुस्कान फिर भी ना मुरझाए।
फिर उठ कर आगे बढ़ता है,
सपनों की ऊँचाई चढ़ता है।

गए हुए मौकों पर ना रो,
नई सफलता के लिए तैयार हो।
हौसला रख और दिल बड़ा,
सफलता तेरे संग चलेगी सदा।

जी आर कवियुर 
23 04 2025

जीवन के मार्ग पर

जीवन के मार्ग पर

कहने की इच्छा है फिर भी,
दर्द के साथ चुपचाप हट जाता हूँ,
जनम भर की पीड़ा को ढोता हूँ।

मालाएँ और परंपराएँ जैसे बदलती हैं,
मैं भी दीवारें बनाता हूँ भीतर —
कला की ये धरोहर ना कभी फीकी पड़े।

मिठास और कड़वाहट से भरी हुई,
कुछ अनभुली मुलाकातें इस राह में,
शब्दों से उन्हें पहचानता हूँ, लेकिन...

मौन ही सबसे प्रिय है मुझे,
ऋषि की तरह जब चलता हूँ,
वही मौन एक मधुर अनुभव बन जाता है।

जी आर कवियूर 
22.07.2025


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Saturday, July 19, 2025

अकेले विचार – 88

अकेले विचार – 88

बहाना बनाना आसान होता है,
पर ज़रूरत में चुप्पी चुभती है।
मुस्कान भी तब फीकी पड़ती है,
जब कोई जवाब नहीं मिलता है।

वक़्त ठहरता है जब दिल उदास हो,
तन्हा रातें उम्र बढ़ा देती हैं।
उम्मीदें ढलती सूरज सी बुझती हैं,
जब हर रास्ता बंद लगता है।

एक शब्द प्यार का राह दिखा सकता है,
पर इंतज़ार दिन को लंबा बना देता है।
हमें खालीपन नहीं, अपनापन चाहिए,
बस कोई हो, जो दिल से हमारे साथ हो।

जी आर कवियुर 
20 07 2025

ताल

ताल 

प्रकृति की ताल गूंजे दूर,
शांत पहाड़ करें श्वास भरपूर।
तारों की बांसुरी रोशनी से बोले,
काल निशब्द गति में डोले।

प्रभा की किरणें राग सुनाएँ,
हवा की चंचलता तान जगाएँ।
हृदय जपे सूक्ष्म स्वर,
जीवन चमके ईश की डोर।

शाश्वत स्पंदन बहता धाराओं में,
लहरें इसे आत्मा तक पहुँचाएँ।
मौन में संगीतमय प्रकटता,
जीवन की सच्चाई लहरों की ताल से मार्ग दिखाए।

जी आर कवियुर 
19 07 2025

रचना

रचना

हर जीव में है एक चिंगारी,
प्रकाश-अंधेरे की यह सवारी।
तरंगें उठें जब आत्मा जागे,
पर्वत भी तब राह बनाए।

श्वास जहाँ मौन टूटे वहाँ,
क्षणों में समय खुद को गढ़ा।
स्वप्न बने हैं तारों की धूल,
सत्य चले क्षणभंगुर फूल।

शक्ति के रूप अनेक हैं छिपे,
शांति भी तूफानों में लिपटे।
उत्पत्ति, रक्षक, अंत समाए,
ब्रह्म की बुनावट में मिल जाए।

जी आर कवियुर 
19 07 2025

अंगारा

अंगारा

दूर कहीं चुपचाप जली एक स्मृति,
भूली हुई रेत पर चमकी एक अग्नि की रेखा।
मरुस्थल में भी भीतर कहीं गर्मी बसी है,
स्पर्श के बिना जलता रहा इंतज़ार का प्यासा पल।

क्या वो प्यार था जो अंगारे सा रुका रहा — या बस प्यास?
शब्दों से परे कठोरता की एक धुन।
हवा भी मुझसे गुज़रने से डरती है,
चाँदनी में भी एक न मिटने वाला अंधेरा छिपा है।

हर मुस्कान के पीछे छिपा है पीड़ा का उजाला,
अनजाने में आत्मसमर्पण — जो जला सकता है।
सर्दी और गर्मी के बीच सच्चाई अंगारे सी दमकती है,
भूल से परे एक अंतिम शब्द — ज्वाला।

जी आर कवियुर 
19 07 2025

फूलों की रंगोली"

फूलों की रंगोली"

सुनहरे रंगों से खिले हैं फूल,
सवेरे की किरणें करती हैं धूल।
फसल की बातें हवा में गूंजें,
खुशियों की आहट हर द्वार पहुंचें।

बचपन की यादें मन में जगती,
हँसी पुरानी अब भी चुपके हंसती।
पत्तल पर सजे पकवानों की गंध,
शांति से बैठी है परंपरा की बंद।

दादी की बातें जैसे बारिश में गीत,
मिलन का उत्सव है हर ओणम् रीत।
फिर से लौटा है त्योहार सुहाना,
घर-घर में बसा ओणम् का ठिकाना।

जी आर कवियुर 
19 07 2025


Friday, July 18, 2025

पक्षी

पक्षी

एक हवा उसकी ख़ुशियों की उड़ान को ढोती है,
प्रभात की रोशनी में पंख चमकते हैं।

डालियों से आकाश तक सुर बहते हैं,
उनकी उड़ान में ही उम्मीद जगती है।

पत्तों की छांव में सपनों का घोंसला बनता है,
और मौन को कोमलता से गूंजित करता है।

अद्भुत पंख नील को छूते हैं,
हर दृश्य में आनंद उगता है।

उनकी सुंदरता के बिना धरती स्थिर लगती है,
सूने जंगल, एक खाली पहाड़ी।

सूरज का स्वागत करने को कोई कोमल झंकार नहीं,
एक दुनिया जिसमें प्रकाश कम है, गीत खो गया।

जी आर कवियुर 
19 07 2025

विश्वास

विश्वास

अंधेरे घंटों में एक कोमल सा उजाला,
हिम्मत टूटे तो यह आशा बन कर बोलता है।

आंधियों और बरसात के बीच एक मौन डोर,
दर्द होते हुए भी दिल को यह संभालता है।

निराशा को उठाने वाले अदृश्य परों जैसा,
एक वादा जो बिना तुलना के साथ निभाता है।

तुम्हारी आत्मा और मेरी रूह के बीच बहती नदी,
शांत विश्वास में पनपता एक अनोखा रिश्ता।

सपने देखने की हिम्मत रखने वालों में यह खिलता है,
हर चुप बहती धारा में इसका प्रकाश झलकता है।

जहां डर गहराई में जड़ें जमाता है,
वहीं यह दिलों को जोड़ना सिखाता है।

जी आर कवियुर 
19 07 2025

“एक याद

“एक याद”

कभी ना मिटने वाली एक परछाई
मन की चुप्पी में फिर से मुस्काई
बीते कल की मधुर कहानी
बरसात सी छू जाए रूह पुरानी

एक मुस्कान की झलक उभरी
आँखों में चुपचाप नमी निखरी
खामोश कदमों की जैसे आहट
सपनों में गहराती कोई राहत

तेरे बोले अल्फ़ाज़ बरस पड़े
शब्दों की माला में बंध गए
हवा संग बिखरी तेरी खुशबू
जैसे दीप जले जीवन रूपू

जी आर कवियुर 
18 07 2025

पवन (तन्हाई की सरसराहट)

पवन (तन्हाई की सरसराहट)

मौन पेड़ों के बीच
एक कोमल सरसराहट बनकर हवा चली,
सुबह की ठंडी छुअन में
सांत्वना सी तट तक उतरी।

घास की कोमलता में बसी मधुर सुगंध,
लहरों को थिरकने को बुलाती चली।
पत्तों पर बहती एक पुरानी धुन,
यादों में गूंजता एक मौन भजन सी।

प्रकाश बिखेरता है उसकी राहों में,
वादियों में सपने खिल उठते हैं।
अनदेखी उंगलियाँ जैसे स्पर्श करें दिन को,
फिर चुपचाप सुकून बनकर लिपट जाती है।

जी आर कवियुर 
18 07 2025


Thursday, July 17, 2025

ध्वनि की गूंज

ध्वनि की गूंज

सरसराहट उड़ी हवा के साथ,
कदम ढल गए सूने पथ पर साफ़।
बूंदें थपथपाईं सूखी शाख,
संध्या में गूंजे खामोश साख।

धड़कन गूंजती मौन गलियारे,
घड़ी टनकी दीवार किनारे।
लहरें टकराईं दूर किनारे,
हंसी छुप गई बंद द्वारे।

पन्ने फड़फड़ाए शीतल झोंके में,
घंटी ने जगाया सोए वृक्ष तले।
साँसें टूटीं भोर से पहले क्षण में,
संगीत रुका पर स्पर्श छू गया मन में।

जी आर कवियुर 
18 07 2025

हँसी में छुपा दर्द" (ग़ज़ल )

हँसी में छुपा दर्द" (ग़ज़ल )


कभी किसी ने न साथ दिया, न शिकवा किया हमने
हर एक दर्द को हँस कर जिया, फ़साना बना हमने

तन्हा सफ़र में चिराग़ों को जलाए रखा दिल ने
अंधेरों से भी रौशनी का रास्ता चुना हमने

हर एक मोड़ पर ज़िंदगी ने इम्तहान लिया
मगर हर मोड़ को अपनी राह बना लिया हमने

लबों पे रख के ख़ामोशी, दिल में तूफ़ाँ रखा
बिखरते जज़्बातों को भी साज़ बना दिया हमने

महफ़िलों में कोई नाम न पूछे तो क्या ग़म
‘जी आर’ कह के अपनी हस्ती जता दिया हमने

जी आर कवियुर 
17 07 2025

Monday, July 14, 2025

"चाँदनी"

"चाँदनी"

तेरी भीगी आँखों में चंदन की ख़ुशबू,
आधी रात में एक सपना खिला।
नीले गगन की चुप सी रंगत में,
तेरे पास होने का अहसास मिला।

तेरी मुस्कान में जागी कोमलता,
जैसे रेशमी पंखों सी धड़कन उड़ी।
तारे पलकों को धीरे से खोलें,
हवा में तेरी मौजूदगी बसी।

चाँदनी में दिल ने सुर खोजा,
हर नज़ारे में तू ही नज़र आया।
छायाएँ पीछे धीरे चलीं,
और प्यार मन में खिलने लगा।

जी आर कवियुर 
15 07 2025

Friday, July 11, 2025

उंगली

उंगली

एक उंगली बहते विचारों की ओर इशारा करती है,
आँगन की पत्तियों से शीतलता बहती है,
धरती पर कोमलता से उकेरी गई प्रार्थनाएँ,
हवा की लय में एक सपना रचा गया।

वह एक बच्चे की मासूम मुस्कान में पिघल जाती है,
रंगों के छूते ही मौन हो जाती है,
उबलते जल में घुलती है ऊष्मा,
मंदिर के फूलों से बरसते हैं प्रतिबिंब।

वह लटकते पालने की रस्सी-सी आगे बढ़ती है,
धुंधली परछाइयों के बीच जीवन चक्कर लगाता है,
स्मृतियों के पंखों पर चुपचाप लिखा गया,
हथेली ने दुःख की एक कथा फुसफुसा दी।

जी आर कवियुर 
12 07 2025

"यादों का नन्हा वसंत"

"यादों का नन्हा वसंत"

बचपन — वो मीठी यादों की ताल,
जैसे रंगों से भीगी एक कोमल आवाज़।
मानसून की ठंडी धाराओं में
संग थी तितलियों सी दोस्ती।

जलाशय में मुस्काती कमल कलियाँ,
नन्हे हाथों से हमने तोड़ी थीं।
खेतों में कौन गाता था तब?
वो चिड़ियों के गीत किसने सुने?

धीरे-धीरे रोशनी सी ढली,
एक नन्हीं छाया साथ चली...
मंद चाँदनी में जो यादें झिलमिलाईं,
वो दिन अब फिर कभी न आएँगे।

जी. आर. कवियूर
11 जुलाई 2025

भटकाव"

भटकाव"

क्षितिज पर छाईं जब छायाएं,
कुछ विचार मन से दूर चले।
किस्मत की गलियों में उलझनें,
आशाओं की आवाज़ भी ढले।

आशाएं जब मौन हुईं एक पल में,
गलत फैसलों ने थका दिया मन।
ठंडी बातों ने राहें बंद कीं,
हृदय में फैला गहरा सन्नाटा बन।

जो रोशनी थी, अब खो गई कहीं,
नयन भी थककर झुक गए।
शिकार से परे जली कोई लौ,
ज़िंदगी भटकती रही चुपचाप।

जी आर कवियुर 
12 07 2025

Thursday, July 10, 2025

उत्सव

उत्सव

जीवन स्वयं एक उत्सव है,
जन्म से मृत्यु तक चलता है यह महा-मेला।
आशा की पताका उठती है हर चरण में,
और मृत्यु की राह में चुपचाप होता है समापन।

हृदय बनता है आस्था का मंडप,
प्रेम की बारिश में राहों पर फूल बिखरते हैं।
यादें बनती हैं मंदिर की पवित्र चौखट,
जहाँ मुस्कानें दीप जलाती हैं, अनवरत।

थैय्यम की ताल और पंचवाद्य की गूंज जैसे,
चलो नाचते रहें हम समय के साथ।
हर एक उत्सव जो स्मृति बन जाए,
जीवन को अच्छाई की राह पर ले जाए।

जी आर कवियुर 
10 07 2025

Wednesday, July 9, 2025

गुरु पूर्णिमा और शुक्रवार – एक भक्ति गीत


गुरु पूर्णिमा और शुक्रवार – एक भक्ति गीत

इस पावन शुक्रवार की सुबह,
भक्ति की लय बहे हर दिशा।
मंत्रों की गूंज हवा में घुले,
प्रभा की किरणें धीरे-धीरे खुले।

फूल चढ़ाएं चरणों में,
प्रेम-ज्योति दीपों में।
आरती का स्वर है गूंजता,
मन में आनंद है जागता।

पूर्णिमा की चांदनी छाई,
गुरु-कृपा की बूँदें लाई।
अंधकार अब दूर हुआ,
प्रकाश का दीपक भर उठा।

गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु महान,
गुरु ही हैं शिव का पहचान।
गुरु के बिना ना राह मिले,
गुरु-स्मरण ही जीवन खिले।

सौ बार नाम उनका लें,
श्रद्धा से नमन हम दें।
इस गुरु पूर्णिमा के दिन,
स्वयं को अर्पित करें गुरुचरण। 

जी आर कवियुर 
10 07 2025

"अकेलापन"

 "अकेलापन"

चुपचाप चांदनी चलती है राहों में,
एक परछाई साथ है गहरी आहों में।
बिना आंसू के टूटता दिल मेरा,
बोल न सके, सूना हो गया सवेरा।

जो ममता थी, अब यादों में रह गई,
छूने कोई आए, वो घड़ी भी बह गई।
पास थे जो हाथ, दूर अब लगते हैं,
हँसी की आवाज़ें भी पराई लगते हैं।

सपनों की धुन अब गूंज नहीं पाती,
इच्छा भी कहीं दूर खो जाती।
खामोशी में कोई गीत न बना,
एक फूल हूं मैं, जो किसी ने न छुआ।

जी आर कवियुर 
09 07 2025 

शुक्रवार

शुक्रवार 

दोपहर की तेज़ धूप तले,
एक मुस्कान आई हौले-हौले।
शुक्रवार फिर धीरे से आया,
थका मन थोड़ा मुस्काया।

दूर कोई सपना उड़ चला,
उम्मीदों की परछाईं चला।
घड़ी की सुई जैसे रुकी,
चुपचाप कोई बात कह चुकी।

भीड़ में भी आकाश नहीं,
फिर भी यह दिन कुछ कम नहीं।
बीते लम्हों से ये सिखाया—
एक दिन भी जीवन चमकाया।

जी आर कवियुर 
09 07 2025

Sunday, July 6, 2025

पुकारते खेत

पुकारते खेत

भूख की पीड़ा को छुपाने को
शब्द नहीं, भोजन चाहिए।
नई सुबह की आशा में
हवा भी चुपचाप कुछ कहती है।

एक बच्चा आँखों से पूछे,
"कब आएगा अन्न हमारा?"
बीज भले छोटा हो, बोना होगा,
घर सिर्फ अपना ही तो नहीं।

खेत दिखते सुंदर दूर से,
पर बिना परिश्रम फल नहीं।
सब चलें बराबरी के पथ पर,
कल के लिए एक नई कहानी बनें।

जी आर कवियुर 
07 07 2025

"मानवता का प्रकाश"

"मानवता का प्रकाश"

अत्याचार बहुत सह लिए, अब ना हों बुराई की विकृतियाँ,
प्रेम बरसे, नफ़रत हटे, हर राह में हों मधुर क्षणिकाएँ।
धर्म-जाति के नाम पर न हो अब कोई दीवार,
हर मन में फैले समानता का उजियार।

सेवा हो प्रगति की सच्ची राह,
हर हृदय में खिले सत्य की चाह।
स्वार्थ त्यागकर सहयोग बने मूल मंत्र,
भारत बने सच्चाई का अमर केंद्र।

वृक्षों से सीखें देना बिना कोई अपेक्षा,
नदी की तरह बहता रहे प्रेम का रेशा।
हर मन में फिर से उठे मानवता की सुगंध,
धरती को स्वर्ग बनाना ही हो जीवन का सारबद्ध।

जी आर कवियुर 
06 07 2025

अकेले विचार – 87

अकेले विचार – 87

 उम्मीद की रोशनी में

खामोशी में ईश्वर बनते हैं प्रार्थना का फूल,
अदृश्य हाथों से बदलते हैं तक़दीर का उसूल।
आशा की मशाल लिए चल पड़ते हैं हम,
आँखें ना देखें फिर भी दिखता है उजास हर दम।

प्रेम साथ रहने का नाम नहीं होता सदा,
जिसके बिना अधूरी लगे हर दास्तां और वादा।
माफ़ी दिल की धुन में खोलती है द्वार,
खामोशी में भी ईश्वर करते हैं काम अपार।

कुछ फूल छाँव में ही खिलते हैं चुपचाप,
कुछ आँसुओं में भी मुस्कुराते हैं आप।
दूसरों को बदलने से पहले खुद को संवारें,
रात भी भागती है सुबह को पुकारें।

जी आर कवियुर 
06 07 2025

Saturday, July 5, 2025

अकेले विचार – 84

अकेले विचार – 84

अपमान आत्मा पर गहरी रेखा छोड़ता है,
मौन बिना बोले बहुत कुछ सिखाता है।
असफलता नया रास्ता दिखा जाती है,
दर्द अक्सर समझदारी दे जाती है।

ठंडी नज़र अंदर की ताक़त जगाती है,
तन्हा सफ़र हिम्मत को बढ़ाती है।
आँसू वो सच दिखा जाते हैं,
संकट मन को मज़बूत बना जाते हैं।

कठिन अनुभव पाठ बन जाते हैं,
घाव कहानियाँ कह जाते हैं।
किताबें जो न सिखा पाईं, वह वक़्त सिखाता है,
ज़िंदगी ख़ुद एक सच्चा गुरु कहलाता है।

जी आर कवियुर 
30  06 2025

अकेले विचार – 85

अकेले विचार – 85


 मुस्कान और आँसू 

मुस्कान बिखेरे उजियारा,
आँसू लाए मन का सहारा।
एक खिले जैसे भोर की रश्मि,
एक गिरे जैसे साँझ की नमी।

दोनों का मिलन दुर्लभ दृश्य,
फिर भी उसमें छिपा विशेष्य।
चुपचाप जो कह जाए बात,
दिल की सबसे सच्ची सौगात।

वो क्षण जब दोनों साथ हों,
भावनाओं के रंग एक साथ हों।
आँसू में हँसी, हँसी में पीर —
जीवन का वो मधुर तस्वीर।

जी आर कवियुर 
01 07 2025

अकेले विचार – 86

अकेले विचार – 86
एक आदर्श छात्र

ज्ञान का दीपक है जो जलाता,
हर राह को वह खुद उजियाता।
दिल से पढ़े, मन से सीखे,
पुस्तकों में जीवन भी देखे।

मेहनत उसकी पहचान बने,
हर मुश्किल में वह आगे चले।
साथी से वह प्रेम जताए,
हर एक से सच्चा व्यवहार निभाए।

दिन हो या हो रात अंधेरी,
चलता है राह सच्चाई की सीधी।
विनम्र मन और निर्मल दृष्टि,
बने समाज की सुंदर सृष्टि।

जी आर कवियुर 
06 07 2025


Friday, July 4, 2025

"तेरी मुस्कुराहट" (ग़ज़ल)

"तेरी मुस्कुराहट" (ग़ज़ल)

तेरी मुस्कुराहट में ही ज़िंदगी है मेरी
बस इसे बचाए रखना आरज़ू है मेरी

तेरे साथ चलूँ तो लगे सफ़र आसान
तेरे बिन अधूरी सी हर आरज़ू है मेरी

तेरी याद से महके हैं मेरे दिन-ओ-शब
तू जो पास हो तो क्या गुफ़्तगू है मेरी

तन्हाई में भी अब तेरा एहसास रहे
तेरे साये से जुड़ी जुस्तजू है मेरी

हर लफ़्ज़ में बस तू ही तेरा नाम रहे
तू ही इब्तिदा है और तू ही नुक़्तह-ए-ख़त्म भी है मेरी

'जी आर' ने जो दिल से दुआएं दी हैं तुझे
वो सदा बहार रहे, ये ही आरज़ू है मेरी

जी आर कवियुर 
05 07 2025

घोड़ा: एक दृष्टि”

घोड़ा: एक दृष्टि”

दुनिया भागती है, लक्ष्य बिसराकर,
हर कदम पर बिखरी सोचें।
आँखों में धूल और बेचैनी,
नक़्शे बने हैं बिन माने।

घोड़े की तरह हम भी चलते हैं,
अंदर छुपे बोझ के साथ चुपचाप।
बाहर तेज़ी, भीतर खालीपन,
दिल में बंटा हुआ दर्द।

कई बार हम लड़खड़ा जाते हैं,
सच की दिशा नज़र नहीं आती।
आँसू बहते हैं खामोशियों में,
ज़िन्दगी बनती है धुंधली यात्रा।

जी आर कवियुर 
04 07 2025 

Thursday, July 3, 2025

तेरे प्यार की बारिश की ताल

तेरे प्यार की बारिश की ताल

मुखड़ा:
तेरे प्यार की बारिश की ताल,
छू गई दिल की हर एक डोरी,
यादों से भीगा एक मधुर सुर,
धीरे-धीरे रूह में उतर गया…

अंतरा:
प्रकृति की गोद में जैसे,
सूरज ने सवेरा किया,
चाँद ने धीरे से सुलाया,
तारे टिमटिमाकर सपनों की
एक प्यारी राह बना गए…

चरन 1:
एकांत के मौन द्वीप सा,
तेरी सोचों ने प्यार सजाया,
जहां छाया और रौशनी जुड़ गए,
एक संपूर्ण गीत बने — मैं और तुम…

चरन 2:
जब तू आया, तो प्रेम पिघल गया,
आँखों में आत्मा की आभा थी,
तेरे बोले शब्द दिन भर गूंजे,
और हम एक कविता बन गए…