बचपन — वो मीठी यादों की ताल,
जैसे रंगों से भीगी एक कोमल आवाज़।
मानसून की ठंडी धाराओं में
संग थी तितलियों सी दोस्ती।
जलाशय में मुस्काती कमल कलियाँ,
नन्हे हाथों से हमने तोड़ी थीं।
खेतों में कौन गाता था तब?
वो चिड़ियों के गीत किसने सुने?
धीरे-धीरे रोशनी सी ढली,
एक नन्हीं छाया साथ चली...
मंद चाँदनी में जो यादें झिलमिलाईं,
वो दिन अब फिर कभी न आएँगे।
जी. आर. कवियूर
11 जुलाई 2025
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