जीवन स्वयं एक उत्सव है,
जन्म से मृत्यु तक चलता है यह महा-मेला।
आशा की पताका उठती है हर चरण में,
और मृत्यु की राह में चुपचाप होता है समापन।
हृदय बनता है आस्था का मंडप,
प्रेम की बारिश में राहों पर फूल बिखरते हैं।
यादें बनती हैं मंदिर की पवित्र चौखट,
जहाँ मुस्कानें दीप जलाती हैं, अनवरत।
थैय्यम की ताल और पंचवाद्य की गूंज जैसे,
चलो नाचते रहें हम समय के साथ।
हर एक उत्सव जो स्मृति बन जाए,
जीवन को अच्छाई की राह पर ले जाए।
जी आर कवियुर
10 07 2025
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