सरसराहट उड़ी हवा के साथ,
कदम ढल गए सूने पथ पर साफ़।
बूंदें थपथपाईं सूखी शाख,
संध्या में गूंजे खामोश साख।
धड़कन गूंजती मौन गलियारे,
घड़ी टनकी दीवार किनारे।
लहरें टकराईं दूर किनारे,
हंसी छुप गई बंद द्वारे।
पन्ने फड़फड़ाए शीतल झोंके में,
घंटी ने जगाया सोए वृक्ष तले।
साँसें टूटीं भोर से पहले क्षण में,
संगीत रुका पर स्पर्श छू गया मन में।
जी आर कवियुर
18 07 2025
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