Friday, July 11, 2025

भटकाव"

भटकाव"

क्षितिज पर छाईं जब छायाएं,
कुछ विचार मन से दूर चले।
किस्मत की गलियों में उलझनें,
आशाओं की आवाज़ भी ढले।

आशाएं जब मौन हुईं एक पल में,
गलत फैसलों ने थका दिया मन।
ठंडी बातों ने राहें बंद कीं,
हृदय में फैला गहरा सन्नाटा बन।

जो रोशनी थी, अब खो गई कहीं,
नयन भी थककर झुक गए।
शिकार से परे जली कोई लौ,
ज़िंदगी भटकती रही चुपचाप।

जी आर कवियुर 
12 07 2025

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