Wednesday, July 30, 2025

अकेले विचार – 95

अकेले विचार – 95

मौन में विकास

बीज ज़मीन में छुपा रहता,
बिना आवाज़ के आगे बढ़ता।
जड़ें फैलतीं गहराई में,
हर दिन आती नई ताज़गी में।

पत्ता उगता पर कोई नहीं सुनता,
हरियाली चुपचाप जीवन बुनता।
जब पेड़ गिरता धरती हिलती,
पर कैसे बढ़ा — ये बात छिपती।

अंतिम पल गूंजता है तेज़,
शुरुआत जन्म लेती है मौन के सेज़।
चुपचाप आगे बढ़ते चलो,
और एक नया जहाँ बना डालो।

जी आर कवियुर 
30 07 2025

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