अत्याचार बहुत सह लिए, अब ना हों बुराई की विकृतियाँ,
प्रेम बरसे, नफ़रत हटे, हर राह में हों मधुर क्षणिकाएँ।
धर्म-जाति के नाम पर न हो अब कोई दीवार,
हर मन में फैले समानता का उजियार।
सेवा हो प्रगति की सच्ची राह,
हर हृदय में खिले सत्य की चाह।
स्वार्थ त्यागकर सहयोग बने मूल मंत्र,
भारत बने सच्चाई का अमर केंद्र।
वृक्षों से सीखें देना बिना कोई अपेक्षा,
नदी की तरह बहता रहे प्रेम का रेशा।
हर मन में फिर से उठे मानवता की सुगंध,
धरती को स्वर्ग बनाना ही हो जीवन का सारबद्ध।
जी आर कवियुर
06 07 2025
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