चुपचाप चांदनी चलती है राहों में,
एक परछाई साथ है गहरी आहों में।
बिना आंसू के टूटता दिल मेरा,
बोल न सके, सूना हो गया सवेरा।
जो ममता थी, अब यादों में रह गई,
छूने कोई आए, वो घड़ी भी बह गई।
पास थे जो हाथ, दूर अब लगते हैं,
हँसी की आवाज़ें भी पराई लगते हैं।
सपनों की धुन अब गूंज नहीं पाती,
इच्छा भी कहीं दूर खो जाती।
खामोशी में कोई गीत न बना,
एक फूल हूं मैं, जो किसी ने न छुआ।
जी आर कवियुर
09 07 2025
No comments:
Post a Comment