मेरे आँसू बह रहे हैं, हर तरफ़ ये बारिशें हैं
सागर नमकीन हो गया है, तेरी याद की तन्हाई है
चाँद भी तनहा खड़ा है, बादलों की भीड़ में
जैसे कोई रूह भूली, किस ज़माने की परछाई है
हर सदा अब दिल में बसकर, गूंजती है रात भर
ख़ामुशी से जो मिली थी, वही सबसे गहरी साई है
खिड़कियाँ सब भीग जाती हैं तेरे ग़ुंचे ख़यालों से
तू नहीं फिर भी मेरे घर में तेरी आहट आई है
जिन लम्हों को भूलने की कर रहा हूँ कोशिशें
वो ही पल मेरी रगों में बन के कोई सच्चाई है
जी आर के दिल में अब तलक जलती है वो रौशनी
जो बुझी थी तेरे जाने पर, मगर अब तक समाई है
जी आर कवियुर
26 07 2025
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