Friday, July 4, 2025

घोड़ा: एक दृष्टि”

घोड़ा: एक दृष्टि”

दुनिया भागती है, लक्ष्य बिसराकर,
हर कदम पर बिखरी सोचें।
आँखों में धूल और बेचैनी,
नक़्शे बने हैं बिन माने।

घोड़े की तरह हम भी चलते हैं,
अंदर छुपे बोझ के साथ चुपचाप।
बाहर तेज़ी, भीतर खालीपन,
दिल में बंटा हुआ दर्द।

कई बार हम लड़खड़ा जाते हैं,
सच की दिशा नज़र नहीं आती।
आँसू बहते हैं खामोशियों में,
ज़िन्दगी बनती है धुंधली यात्रा।

जी आर कवियुर 
04 07 2025 

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