सुनहरे रंगों से खिले हैं फूल,
सवेरे की किरणें करती हैं धूल।
फसल की बातें हवा में गूंजें,
खुशियों की आहट हर द्वार पहुंचें।
बचपन की यादें मन में जगती,
हँसी पुरानी अब भी चुपके हंसती।
पत्तल पर सजे पकवानों की गंध,
शांति से बैठी है परंपरा की बंद।
दादी की बातें जैसे बारिश में गीत,
मिलन का उत्सव है हर ओणम् रीत।
फिर से लौटा है त्योहार सुहाना,
घर-घर में बसा ओणम् का ठिकाना।
जी आर कवियुर
19 07 2025
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