हर जीव में है एक चिंगारी,
प्रकाश-अंधेरे की यह सवारी।
तरंगें उठें जब आत्मा जागे,
पर्वत भी तब राह बनाए।
श्वास जहाँ मौन टूटे वहाँ,
क्षणों में समय खुद को गढ़ा।
स्वप्न बने हैं तारों की धूल,
सत्य चले क्षणभंगुर फूल।
शक्ति के रूप अनेक हैं छिपे,
शांति भी तूफानों में लिपटे।
उत्पत्ति, रक्षक, अंत समाए,
ब्रह्म की बुनावट में मिल जाए।
जी आर कवियुर
19 07 2025
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