भूख की पीड़ा को छुपाने को
शब्द नहीं, भोजन चाहिए।
नई सुबह की आशा में
हवा भी चुपचाप कुछ कहती है।
एक बच्चा आँखों से पूछे,
"कब आएगा अन्न हमारा?"
बीज भले छोटा हो, बोना होगा,
घर सिर्फ अपना ही तो नहीं।
खेत दिखते सुंदर दूर से,
पर बिना परिश्रम फल नहीं।
सब चलें बराबरी के पथ पर,
कल के लिए एक नई कहानी बनें।
जी आर कवियुर
07 07 2025
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