Sunday, July 6, 2025

पुकारते खेत

पुकारते खेत

भूख की पीड़ा को छुपाने को
शब्द नहीं, भोजन चाहिए।
नई सुबह की आशा में
हवा भी चुपचाप कुछ कहती है।

एक बच्चा आँखों से पूछे,
"कब आएगा अन्न हमारा?"
बीज भले छोटा हो, बोना होगा,
घर सिर्फ अपना ही तो नहीं।

खेत दिखते सुंदर दूर से,
पर बिना परिश्रम फल नहीं।
सब चलें बराबरी के पथ पर,
कल के लिए एक नई कहानी बनें।

जी आर कवियुर 
07 07 2025

No comments:

Post a Comment