दोपहर की तेज़ धूप तले,
एक मुस्कान आई हौले-हौले।
शुक्रवार फिर धीरे से आया,
थका मन थोड़ा मुस्काया।
दूर कोई सपना उड़ चला,
उम्मीदों की परछाईं चला।
घड़ी की सुई जैसे रुकी,
चुपचाप कोई बात कह चुकी।
भीड़ में भी आकाश नहीं,
फिर भी यह दिन कुछ कम नहीं।
बीते लम्हों से ये सिखाया—
एक दिन भी जीवन चमकाया।
जी आर कवियुर
09 07 2025
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