Wednesday, December 24, 2025

बिन चैन की रातें"( ग़ज़ल)

बिन चैन की रातें"( ग़ज़ल)

बीते दिनों की यादों में जीते हैं
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

ख़्वाबों की दुनिया में खोते हैं हम
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

वो लम्हें जो साथ थे कभी हमारे
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

तन्हाई के साये में छुपते हैं हम
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

दिल की गहराइयों में बहते हैं आँसू
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

जी आर – हर याद बस तुझसे जुड़ी है
बिन चैन की रातें गुज़ारते हैं

जी आर कवियुर 
24 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Tuesday, December 23, 2025

हर मुलाक़ात का दर्द” ( ग़ज़ल)

हर मुलाक़ात का दर्द” ( ग़ज़ल)

हर मुलाक़ात के बाद बिछड़ने का दर्द होता है,  
हालात जो लाते हैं, तनहाई में दर्द होता है  

छुपा नहीं सकता दिल की आग किसी से भी,  
यादों की चादर ओढ़ के सोता हर कोई, दर्द होता है  

राहें जुदा सही, मगर तन्हाई में वो पास लगता है,  
हर ख़ामोशी बोलती है उन लम्हों की बात, जो दर्द होता है  

हवाओं में घुली है तेरी खुशबू हर तरफ़,  
हर मुस्कान छुपाती है वो आँसू जो अंदर दर्द होता है  

आँखों से उतरकर दिल तक जाती है तेरी याद,  
जो मिला सिर्फ़ ख्वाबों में, हकीकत में हर बार दर्द होता है  

तू मिले या न मिले, यादों का साया हमेशा साथ रहेगा,  
हर शब, हर सुबह, तेरी कमी का अहसास यही है, दर्द होता है


जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)


हवा, फूल, मानव


हवा, फूल, मानव

दिन के नीले आकाश की तरह,  
मानव नई आशाओं के साथ चलता है।  
हवा में बहती नदी के रूप में,  
मन फैलता है, बहता है और छिपता है।  

फूल खिलेंगे और उनकी आँखें मुस्कुराएंगी,  
फिर भी समय के किनारे पर, वे बदल जाएँगी।  
जब बारिश होगी और मिट्टी गहरी हो जाएगी,  
विचारों की छाया हानियों की गिनती करेगी।  

प्रेम चाँदनी की तरह होगा,  
स्थिर नहीं, बदलने की जगह देने वाला।  
पहले यह गीत गाएगा, फिर गायब हो जाएगा,  
भावनाएँ हृदय की धाराओं से बहेंगी।  

हवा और तितलियाँ सेवा देंगी,  
प्रकृति के विचित्र नहीं — बल्कि नियम।  
फिर भी जो नहीं देखता और नहीं सीखता,  
वह मानव स्वार्थ की चादर में ढका है।  

दरवाजा खोलो, और हवा उड़ जाएगी,  
फिर भी पेड़ों की चोटियाँ स्थिर रहेंगी।  
हल्की बारिश में या गहरी मुस्कानों में,  
स्वभाव प्रकृति का प्रतिबिंब बन जाता है।  

नई भोरें हृदय में उगेंगी,  
पुरानी यादें स्मृति में सो जाएँगी।  
जीवन फूलों के दृश्य मार्ग की तरह है,  
जो हम अनुभव करते हैं और जो छोड़ देते हैं,  
लेकिन केवल प्रेम ही शाश्वत रहेगा।


जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)


बीते हुए दिन

बीते हुए दिन

बीता हुआ साल धीरे दस्तक देता है  
पहले सुनी परछाइयाँ साथ ले आता है  
कुछ सपने धुँधले, कुछ रह गए साथ  
कुछ दुआएँ टूटीं, कुछ बनीं सौग़ात  

ख़ामोश दर्द में मुस्काना सीखा  
बारिश में थोड़ा नाचना सीखा  
कुछ अपने छूटे, कुछ पास रहे  
हर विदाई ने सुनना सिखा दिया  

रातें लंबी हुईं, दिल समझदार हुआ  
सच सादा आँखों में छुपता हुआ  
मिटते लम्हों के इस मोड़ पर  
उम्मीद चली आने वाले साल की ओर  

अनकहे इरादे राह तकते खड़े  
खुले बिना ख़त जैसे पास पड़े  
सुबह की रोशनी में हम खड़े हैं आज  
नए साल का स्वागत, शांत हौसलों के साथ

जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

“रातों की नमी” (ग़ज़ल)

“रातों की नमी” (ग़ज़ल)

आज भी तेरी अंगड़ाई की याद सताती हैं रातें
होठों की नमी ख्वाबों में खो जाती हैं रातें

तेरी हँसी की खनक अब भी गूँजती
सन्नाटों में भी तेरा गीत बज जाती हैं रातें

चाँदनी भी शरमा जाती
तारों की महफ़िल भी बुझ जाती हैं रातें

हर धड़कन में तेरा नाम उतर आता
हर साँस में तेरा जादू समेट आता हैं रातें

दिल की तन्हाई में तेरी परछाई बसती
हर याद ताज़ा हो जाती हैं रातें

जी आर की दुनिया में तेरी याद रहती
हर खुशी और ग़म में तेरी परछाई रहती हैं रातें

जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

हर मुलाक़ात का दर्द” ( ग़ज़ल)

हर मुलाक़ात का दर्द” ( ग़ज़ल)

हर मुलाक़ात के बाद बिछड़ने का दर्द होता है,  
हालात जो लाते हैं, तनहाई में दर्द होता है  

छुपा नहीं सकता दिल की आग किसी से भी,  
यादों की चादर ओढ़ के सोता हर कोई, दर्द होता है  

राहें जुदा सही, मगर तन्हाई में वो पास लगता है,  
हर ख़ामोशी बोलती है उन लम्हों की बात, जो दर्द होता है  

हवाओं में घुली है तेरी खुशबू हर तरफ़,  
हर मुस्कान छुपाती है वो आँसू जो अंदर दर्द होता है  

आँखों से उतरकर दिल तक जाती है तेरी याद,  
जो मिला सिर्फ़ ख्वाबों में, हकीकत में हर बार दर्द होता है  

तू मिले या न मिले, यादों का साया हमेशा साथ रहेगा,  
हर शब, हर सुबह, तेरी कमी का अहसास यही है, दर्द होता है


जी आर कवियुर 
23 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)

Monday, December 22, 2025

पर्दों के परे बसे प्रेम(वेदांत / सूफ़ी गीत)


पर्दों के परे बसे प्रेम
(वेदांत / सूफ़ी गीत)

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

छू न सकने वाली दूरी छोड़कर  
एक हृदय यात्रा जारी है  
फासले वहीं हैं  
प्रेम की साँसें फैल रही हैं  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

आँखों में न भरने वाला प्रेम  
नदी जैसी बहती खुशबू  
अनुपस्थिति का सच भी  
मीठा सुख बन गया  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

समीप नहीं लगने वाले लम्हे  
भीतर तक पास महसूस होते हैं  
विरह की अनुभूति  
साक्ष्य बनकर प्रकट होती है  
मृदुलता की आभा में  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

दुःख की पुकार नहीं है  
यादों में  
मधुरता की रौशनी है  
इंतजार में  
एक दिव्य नृत्य जागता है  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन  

मिलने की आवश्यकता नहीं  
जारी रहने का विश्वास पर्याप्त है  
अनंत रूप में बहता प्रेम  
समय को पार करता हुआ  

सन्नाटा बन गया शब्दों में  
बहे अमृत की बूँदें अनजाने से  
मन की सूनी रेगिस्तान में  
संगम बन गया मौन

जी आर कवियुर 
22 12 2025
(कनाडा, टोरंटो)