वक्त की दौड़ पर चला गया
उम्र की तकाद भूलता चला
ख्वाब मेरे बिखरते रहे सफर में
साया भी दूर छूटता चला
धुंधली सी यादें दिल में बसीं
चेहरे पे कोई नकाब सा चढ़ा
राहों पे मंज़िलें थी कहां
पांव मेरा फिर बढ़ता चला
हर एक लम्हा जैसे ठहर सा गया
फिर भी मैं खुद को रोक ना सका
हसरतें दिल में पलती रहीं
फिर भी वक्त से लड़ता चला
जी आर कवियूर
10 10 2024
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