मजबूर करती हैं।
पर्दे के पीछे छिपी दो नैन,
लिखने को मजबूर करती हैं।
बातों के मोती, खामोश लब,
हर पल हमें मजबूर करती हैं।
तेरी हया में छुपा है जहाँ,
राहें सभी मजबूर करती हैं।
नज़रें उठाकर कभी जो देखो,
वो चाहतें मजबूर करती हैं।
दिल की जुबां में बसते हो तुम,
तेरी यादें मजबूर करती हैं।
सपनों में आकर हर एक रात,
वो दूरियां मजबूर करती हैं।
जी आर कवियूर
23 10 2024
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