कैसे कटेगी ये राहें, अंजानी डगर है।
सितारे तो हैं हमसफ़र, मंज़िल मगर है।
हर मोड़ पर हमसे ये कहता है रास्ता,
चलते चलो तुम, कहीं कोई नज़र है।
हौसले टूटा किए, ख़्वाबों में सजी धूल,
मंज़र भी पराया, हर चौराहे पर डर है।
तेरा सफ़र तेरे साथ कटेगा या यूँ ही,
तन्हाई से हमको अब भी थोड़ी क़सर है।
ख़ुदा की रहमतों से ना हो बेख़बर ऐ दिल,
हर मुश्किल में शायद कोई दर पे असर है।
कुछ दर्द संजोए चले हम यूँ मुसाफ़िर,
राहों में छुपा शायद इक उजला सहर है।
जी आर कवियूर
31 10 2024
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